Saturday, December 21, 2019

Visarg sandhi

                       विसर्ग संधि

विसर्ग संधि की परिभाषा :

विसर्ग संधि के नियम : 

विसर्ग संधि का उदाहरण :

परिभाषा :

विसर्ग (:) को स्वर या व्यंजन से योग करने पर जो परिवर्तन होता है, उसे विसर्ग संधि कहा जाता है।

जैसे - नि: + चय = निश्चय 

उपरोक्त दो शब्द 'नि' और 'चय' का योग करते समय पहले शब्द का विसर्ग (:) का लोप हो जाता है तथा उसके स्थान पर 'श्' का प्रयोग कर 'निश्चय' शब्द का निर्माण होता है।

महत्पूर्ण बिंदु :

विसर्ग का प्रयोग शब्द के पूर्व होता है। बाद के शब्दों में इसकी कल्पना नही की जा सकती है।
इसमें भी कुछ नियमों का उपयोग किया जाता है।

1. नियम : ( विसर्ग का 'ओ' में परिवर्तन )

विसर्ग (:) के पहले 'अ' या 'आ' तथा बाद वाले शब्द में किसी भी वर्ग का तृतीय, चतुर्थ, पंचम अथवा अंतस्थ व्यंजन वर्ण य,र,ल,व तथा 'ह' के साथ योग करने पर विसर्ग 'ओ' में परिवर्तित हो जाता है।

जैसे - अधः + गति = अधोगति

उपरोक्त दो शब्द में पहला शब्द 'अधः' में विसर्ग के पहले 'अ' स्वर है, इसलिए 'अधः' शब्द का विसर्ग 'ओ' में परिणत हो जाता है। जिससे 'ध' ओ की मात्रा से अलंकृत होकर 'अधोगति' नामक नवीन शब्द बन जाता है।

उदाहरण :

उरः + ज = उरोज
तपः + भूमि = तपोभूमि
तपः + बल = तपोबल
तपः + वन = तपोवन
तपः + लाभ = तपोलाभ
तपः + ज्योति = तपोज्योति
तमः + गुण = तमोगुण
तेजः + पुंज = तेजोपुंज
तेजः + मय = तेजोमय
तेजः + राशि = तेजोराशि
पयः + द = पयोद
पयः + धि = पयोधि
पयः + धर = पयोधर
मनः + ज = मनोज
मनः + भाव = मनोभाव
मनः + गत = मनोगत
मनः + हर = मनोहर
मनः + विकार = मनोविकार
मनः + विनोद = मनोविनोद
मनः + कामना = मनोकामना
मनः + रथ = मनोरथ
मनः + रम = मनोरम
मनः + रंजन = मनोरंजन
मनः + विज्ञान = मनोविज्ञान
मनः + व्यथा = मनोव्यथा
मनः + नीत = मनोनीत
मनः + योग = मनोयोग
मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
यशः + दा = यशोदा
यशः + गान = यशोगान
यशः + गाथा = यशोगाथा
यशः + धरा = यशोधरा
शिरः + मणि =शिरोमणि
सरः + ज = सरोज
सरः + वर = सरोवर

2. नियम : ( विसर्ग का लोप होना )

विसर्ग से पहले 'अ' या 'आ' होने पर उसे 'अ' या 'आ' रहित भिन्न स्वर से योग करने पर विसर्ग का लोप हो जाता है।

जैसे - अतः + एव = अतएव
         ततः + एव = ततएव

3. नियम : ( विसर्ग का 'च' में परिवर्तन )

विसर्ग के पूर्व स्वर 'इ' या 'उ' होने पर तथा उसे 'च' या 'छ' के साथ संयुक्त करने पर विसर्ग 'च्' में परिवर्तित हो जाता है।

जैसे - विसर्ग ( : ) + छ् = च्

अनुः + छेद = अनुच्छेद
परिः + छेद = परिच्छेद

4. नियम : ( विसर्ग का 'र' में परिवर्तन )

विसर्ग से पूर्व 'अ' या 'आ' रहित कोई भिन्न स्वर के साथ तथा बाद के शब्द में किसी वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवा वर्ण या अ, आ, य, र, ल, व, ह का मेल होने पर विसर्ग 'र' में बदल जाता है।

जैसे - निः + आशा = निराशा

उपरोक्त पहले शब्द 'निः' में 'अ' या 'आ' से भिन्न स्वर है तथा बाद वाले शब्द में 'आ' स्वर है। दोनों के मिलने पर पहले शब्द का विसर्ग 'र' में रूपांतरित होकर एक नवीन शब्द 'निराशा' बन जाता है।

उदाहरण :

अहः + निश = अहर्निश
आशीः + वाद = आशीर्वाद
दुः + ग = दुर्ग
दुः + गुण = दुर्गुण
दुः + गति = दुर्गति
दुः + जन = दुर्जन
दुः + दिन = दुर्दिन
दुः + दशा = दुर्दशा
दुः + भाग्य = दुर्भाग्य
दुः + अवस्था = दुरवस्था
दुः + आत्मा = दुरात्मा
दुः + आशा = दुराशा
दुः + आचार = दुराचार
दुः + नीति = दुर्नीति
दुः + बुद्धि = दुर्बुद्धि
दुः + वह = दुर्वह
दुः + व्यवहार = दुर्व्यवहार
निः + उद्देश्य = निरुद्देश्य
निः + गंध = निर्गंध
निः + मल = निर्मल
निः + धन = निर्धन
निः + जन = निर्जन
निः + जल = निर्जल
निः + जला = निर्जला
निः + झर = निर्झर
निः + बल = निर्बल
निः + भर = निर्भर
निः + आशा = निराशा
निः + आधार = निराधार
निः + यात = निर्यात
निः + अर्थक = निरर्थक
निः + अक्षर = निरक्षर
निः + जीव = निर्जीव
निः + ईह = निरीह
निः + ईक्षण = निरीक्षण
निः + ईश्वर = निरीश्वर
निः + विवाद = निर्विवाद
निः + विकार = निर्विकार
निः + उपाय = निरुपाय
पुनः + अपि = पुनरपि
बहिः + मुख = बहिर्मुख
स्वः + ग = स्वर्ग

5. नियम : ( विसर्ग का 'र' में परिवर्तन )

विसर्ग के साथ पहला शब्द पुनः या अंंतः होने पर विसर्ग 'र' में परिवर्तित हो जाता है।

जैसे - पुनः + मुद्रण = पुनर्मुद्रण
         पुनः + जन्म = पुनर्जन्म
         अंतः + धान = अंतर्धान
         अंतः + निहित = अंतर्निहित

6. नियम : ( विसर्ग का 'श्' में परिवर्तन )

विसर्ग के पहले कोई स्वर के होने पर तथा उसके बाद के शब्द च, छ, श से योग करने पर विसर्ग 'श' में परिणत हो जाता है।

जैसे - विसर्ग ( : ) + च् = श्
         विसर्ग ( : ) + छ् = श्
         विसर्ग ( : ) + श् = श्

उदाहरण :

निः + चय = निश्चय
निः + चल = निश्चल
दुः + चरित्र = दुश्चरित्र
निः + छल = निश्छल
निः + शस्त्र = निश्शस्त्र
दुः + शासन = दुश्शासन

7. नियम : ( विसर्ग का 'ष्' में परिवर्तन )

विसर्ग के पूर्व 'इ' या 'उ' के साथ बाद के शब्द मेंं क, ख, ट, ठ, प, फ मेल का परिणाम 'ष्' होता है अर्थात विसर्ग ( : ) 'ष' में परिवर्तित हो जाता है।

जैसे - विसर्ग + क् = ष्
         विसर्ग + ख् = ष्
         विसर्ग + ट् = ष्
         विसर्ग + ठ् = ष्
         विसर्ग + प् = ष्
         विसर्ग + फ् = ष्

उदाहरण :

आविः + कार = आविष्कार
दुः + कर = दुष्कर
दुः + कर्म = दुष्कर्म
दुः + प्रकृति = दुष्प्रकृति
निः + कलंक = निष्कलंक
निः + काम = निष्काम
परिः + कार = परिष्कार
बहिः + कार = बहिष्कार
धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
चतुः + पथ = चतुष्पद
निः + पाप = निष्पाप
दुः + प्रभाव = दुष्प्रभाव
निः + प्राण = निष्प्राण
निः + फल = निष्फल

8.नियम : ( विसर्ग का 'स्' में परिवर्तन )

विसर्ग को क, त, थ, प, स के साथ जोड़ने पर विसर्ग 'स' में रूपांतरित हो जाता है।

जैसे - विसर्ग ( : ) + क् = स्
         विसर्ग ( : ) + त् = स्
         विसर्ग ( : ) + थ् = स्
         विसर्ग ( : ) + प् = स्
         विसर्ग ( : ) + स् = स्

उदाहरण :

नमः + कार = नमस्कार
पुरः + कार = पुरस्कार
नमः + ते = नमस्ते
भाः + कर = भास्कर
भाः + पति = भास्पति
मनः + ताप = मनस्ताप
निः + सृत = निस्सृत
निः + तेज = निस्तेज
अंतः + थ = अंतस्थ
निः + संदेह = निस्संदेह
निः + संतान = निस्संतान
निः + सहाय = निस्सहाय
निः + सार = निस्सार
दुः + तर = दुस्तर
दुः + साहस = दुस्साहस
श्रेयः + कर= श्रेयस्कर

9. नियम : ( विसर्ग लोप और दीर्घ स्वर का प्रयोग )

विसर्ग पूर्व ह्स्व स्वर होने पर तथा उसे 'र' से युक्त करने पर विसर्ग लुप्त होकर विसर्ग का पूर्व ह्स्व स्वर दीर्घ रूप में बदल जाता है।

उदाहरण :


निः + रज = नीरज
निः + रव = नीरव
निः + रस = नीरस
निः + रोग = नीरोग 

10. नियम : (विसर्ग का पूर्ववत् प्रयोग )

विसर्ग से पहले 'अ' स्वर होने पर तथा उसे क, ख, प, फ से जोड़ने पर विसर्ग का पूर्ववत् उपयोग होता है।

उदाहरण :

अधः + पतन = अधःपतन
अंतः + करण = अंतःकरण
अंतः + पुर = अंतःपुर
अंतः + सलिला = अंतःसलिला
दुः + ख = दुःख
दुः + स्वप्न = दुःस्वप्न
पयः + पान = पयःपान
प्रातः + काल = प्रातःकाल
यशः + पालन = यशःपालन
रजः + कण = रजःकण







Monday, December 16, 2019

Vyanjan sandhi

                        व्यंजन संधि

व्यंजन संधि की परिभाषा :

व्यंजन संधि का उदाहरण :

परिभाषा :

व्यंजन संधि में व्यंजन के साथ स्वर या व्यंजन का मेल करने पर जो परिवर्तन होता है, वह व्यंजन संधि कहलाता है।

जैसे : जगत् + ईश = जगदीश

उपरोक्त दो शब्द 'जगत्' और 'ईश' में पहला शब्द 'जगत' का अंतिम वर्ण 'त्' है तथा दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण 'ई' दीर्घ स्वर है। दोनों के जुड़ने पर 'त' अपने वर्ग के तीसरे रूप में परिवर्तित होकर 'जगदीश' बन जाता है।

महत्वपूर्ण बिंदु :

व्यंजन संधि में अनेक प्रकार के नियमों का प्रयोग किया जाता है। इसे समझने से पूर्व स्पर्श व्यंजन के वर्गों की पुनरावृत्ति आवश्यक है।
हिंदी वर्णमाला में स्पर्श व्यंजनों की संख्या पच्चीस है। स्पर्श व्यंजन को पाँच वर्गों में बाँटा गया है। प्रत्येक वर्ग का भिन्न - भिन्न नाम है।

कवर्ग = क ख ग घ ङ
चवर्ग = च छ ज झ ञ
टवर्ग = ट ठ ड ढ ण
तवर्ग = त थ द ध न
पवर्ग = प फ ब भ म
उपरोक्त वर्ग पाँच स्पर्श व्यंजनों के समूह हैं। प्रत्येक वर्ग के नाम उनके प्रथम वर्ण के आधार पर है। 

जैसे :

कवर्ग में पाँच स्पर्श व्यंजन क, ख, ग, घ, ङ आते हैं।

व्यंजन संधि के नियम निम्नलिखित हैं।

1. स्पर्श व्यंजन के साथ स्वर का मेल करने पर स्पर्श व्यंजन अपने वर्ग के तीसरे अक्षर के रूप में परिवर्तित हो जाता है अर्थात क्, च्, ट्, त्, प् के साथ स्वर के योग का परिणाम  क्रमशः ग, ज, ड, द, ब होता है या क् 'ग' में, च् 'ज' में, ट् 'ड' में, त् 'द' में तथा प् 'ब' में बदल जाता है।

जैसे =
क् + स्वर = ग
च् + स्वर = ज
ट् + स्वर = ड
त् + स्वर = द
प् + स्वर = ब

उदाहरण :

अच् + अंत = अजंत
अप् + आदान = अबादान
उत् + अन्त = उदन्त
उत् + अग्र = उदग्र
उत् + अय = उदय
कृत् + अन्त = कृदन्त
चित् + आनंद = चिदानंद
जगत् + आनंद = जगदानंद
जगत् + आधार = जगदाधार
जगत् + गुरु = जगद्गुरु
तत् + अर्थ = तदर्थ
तत् + अनुसार = तदनुसार
तत् + आकार = तदाकार
तत् + आत्म = तदात्म
तत् + आत्मा = तदात्मा
दिक् + अंत = दिगंत
दिक् + अंबर = दिगम्बर
दिक् + अंचल = दिगंचल
वाक् + ईश = वागीश
षट् + आनंद = षडानंद
सत् + आचार = सदाचार
सत् + आनंद = सदानंद
सत् + इच्छा = सदिच्छा
सम् + उत् + आय = समुदाय

2. किसी भी ह्स्व स्वर या 'आ' को 'छ' से जोड़ने पर वहाँ 'च्' की उत्पत्ति होती है अर्थात दोनों के बीच 'च्' का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण :

आ + छादन = आच्छादन
अनु + छेद = अनुच्छेद
जग् + छाया = जगच्छाया
परि + छेद = परिच्छेद
वि + छेद = विच्छेद
वृक्ष् + छाया = वृच्छाया
शिव् + छाया = शिवच्छाया
संधि + छेद = संधिच्छेद
स्व् + छंद = स्वच्छंद

3. अ/आ रहित किसी भी स्वर के साथ 'स' का योग करने का परिणाम 'ष' होता है अर्थात 'स' का परिवर्तन 'ष' में होता है।

उदाहरण :

अभि + सेक = अभिषेक
वि + सम = विषम
सु + सुप्त = सुषुप्त

4. 'न' या 'म' को किसी भी स्वर से योग करने पर किसी तरह का कोई बदलाव नहीं होता है बल्कि 'न' या 'म' में स्वर की मात्रा का प्रयोग होता है।

उदाहरण :

अन् + अन्य = अनन्य
अन् + अंत = अनंत
अन् + आगत = अनागत
अन् + आहार = अनाहार
धन् + आलय = धनालय
भोजन् + आलय = भोजनालय
शयन् + आगार = शयनागार
स्नान् + आगार = स्नानागार
प्रेम् + आलाप = प्रेमालाप
सम् + आहार = समाहार

5. म' के साथ स्वर वर्ण का मेल करने पर 'म' उसी स्वर की मात्रा से अलंकृत हो जाता है।

उदाहरण :

सम् + ईक्षा = समीक्षा
6. इसमें व्यंजन वर्ण के साथ व्यंजन वर्ण का मेल होता है। इसमें स्पर्श व्यंजन वर्ग का पहला वर्ण क,च,ट,त,प संधि करने के उपरांत वह अपने वर्ग के तीसरे वर्ण ग,ज,ड,द,ब में परिवर्तित हो जाता है।

उदाहरण :

अप् + ज = अब्ज
अप् + धि = अब्धि
अप् + नदी = अब्नद
अप् + माधुर्व = अब्माधुर्व
अप् + हरण = अब्भरण
अच् + हरण = अज्झरण
अच् + हीन = अज्झीन
अच् + लुप्त = अज्लुप्त
उत् + अंक = उदंक
उत् + गम = उद्गम
उत् + गार = उद्गार
उत् + घोष = उद्घोष
उत्+ घाटन = उद्घाटन
उत् + दंड = उद्दंड
उत् + भव = उद्भव
उत् + भास = उद्भास
उत् + मूलित = उन्मूलित
उत् + मीलित = उन्मीलित
उत्+ याम = उद्याम
उत् + योग = उद्योग
उत् + वर्तन = उद्वर्तन
उत् + विग्न = उद्विग्न
उत् + वेग = उद्वेग
कच् + जल = कज्जल
तत् + भव = तद्भव
तत् + रूप = तद्रूप
दिक् + गज = दिग्गज
दिक् + दर्शन = दिग्दर्शन
दिक् + भ्रम = दिग्भ्रम
भगवत् + गीता = भगवद्गीता
भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति
ऋक् + वेद = ऋग्वेद
वाक् + युद्ध = वाग्युद्ध
वाक् + दत्ता = वाग्दत्ता
षट् + दर्शन = षड्दर्शन
सत् + भावना = सद्भावना
सत् + काल = सद्काल
सत् + गति = सद्गति
सत् + वाणी = सदवाणी

7. वर्ग का पहला वर्ण क,च,ट,त,प को न/म से योग करने पर 'क्' का 'ङ', 'च्' का 'ञ', 'ट्' का 'ण', 'त्' का 'न' तथा 'प्' का 'म' हो जाता है।

उदाहरण :

अप् + मय = अम्मय
उत् + नति = उन्नति
उत् + नयन = उन्नयन
उत् + नायक = उन्नायक
उत् + मत्त = उन्मत्त
उत् + माद = उन्माद
उत् + मुख = उन्मुख
उत् + मूलन = उन्मूलन
चित् + मय = चिन्मय
जगत् + नाथ = जगन्नाथ
जगत् + माता = जगन्माता
तत् + नाम = तन्नाम
तत् + मय = तन्मय
तत् + मात्र = तन्मात्र
तत् + मित्र = तन्मित्र
दिक् + नाग = दिङ्नाग
रुच् + मय = रुञ्मय
वाक् + मय = वाङ्मय
षट् + मास = षण्मास
षट् + मुख = षण्मय
सत् + नारी = सन्नारी
सत् + मति = सन्मति
सत् + मार्ग = सन्मार्ग

8. किसी शब्द का अंतिम वर्ण 'त्' होने पर तथा उसे च,ज,ट,ड या ल से संयुक्त करने पर 'त्' दूसरे शब्द के पहले वर्ण के रूप में ढल जाता है।

उदाहरण :

उत् + चारण = उच्चारण
उत् + ज्वल = उज्ज्वल
उत् + डयन = उड्डयन
उत् + लास = उल्लास
उत् + लंघन = उल्लंघन
उत् + लेख = उल्लेख
जगत् + जननी = जगज्जननी
तत् + लीन = तल्लीन
वृहत् + टीका = वृहट्टीका
सत् + चरित्र = सच्चरित्र
सत् + जन = सज्जन

9. 'त्' के साथ 'छ' का योग करने पर त् 'च्' में परिणत हो जाता है।

उदाहरण :

उत् + छिन्न = उच्छिन्न
जगत् + छाया = जगच्छाया

10. 'त्' को 'श' से संयुक्त करने पर दोनों मिलकर ( त्+श = च्छ) में परिवर्तित हो जाता है।

उदाहरण :

उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट
उत् + श्वास = उच्छवास
उत् + श्रृंखल = उच्छृंखल
तत् + शिव = तच्छिव
सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र

11. 'त्' को 'ह' से जोड़ने पर दोनों युक्त होकर (त्+ह = द्ध) में बदल जाता है।

उदाहरण :

उत् + हार = उद्धार
उत् + हत = उद्धत
तत् + हित = तद्धित
पद् + हति = पद्धति

12. 'म' के साथ किसी भी स्पर्श व्यंजन का योग करने पर 'म' अपने ही वर्ग के पंचमाक्षर में रूपांतरित हो जाता है अर्थात 'क' का 'ङ', 'च' का 'ञ', 'ट' का 'ण', 'त' का 'न' तथा 'प' का 'म' हो जाता है। शब्द के अंत में अनुस्वार सदैव 'म' का ही रूप लेता है।

उदाहरण :

काम् + ति = कान्ति
किम् + कर = किङकर
किम् + चित = किंचित्
किम् + नर = किन्नर
गम् + तव्य = गंतव्य
परम् + तु = परन्तु
पम् + चम = पंचम
सम् + कर = शंकर
सम् + कलन = संकलन
शम् + का = शंका
सम् + कल्प = संकल्प
सम् + गत = संगत
सम् + गति = संगति
सम् + चय = संचय
सम् + चार = संचार 
सम् + जय = संजय
सम् + जीवन = संजीवन
सम् + तोष = संतोष
सम् + थाल = संथाल
सम् + देह = संदेह
सम् + गम = संगम
सम् + गठन = संगठन
सम् + कृति = संस्कृति
सम् + दीप = संदीप
सम् + ध्या = संध्या
सम् + बोधन = संबोधन
सम् + भव = संभव
सम् + भाषण = संभाषण
सम् + गीत = संगीत
सम् + ताप = संताप
सम् + धान = सन्धान
सम् + धि = संधि
सम् + बंध = संबंध
सम् + न्यासी = संन्यासी
सम् + कर्ता = संस्कर्ता
सम् + देश = संदेश
सम् + निहित = संनिहित
सम् + पूर्ण = सम्पूर्ण
सम् + बल = संबल

13. 'म्' को अंतस्थ या उष्म व्यंजन वर्ण य,र,ल,व,श,स,ह के साथ जोड़ने पर 'म्' अनुस्वार में परिवर्तित हो जाता है तथा 'म्' और 'र' के योग में किसी-किसी शब्द में 'म्' में पदेन का प्रयोग होता है।

जैसे = म् + र = म्र

उदाहरण :

सम् + योग = संयोग
सम् + यम = संयम
सम् + रक्षक = संरक्षक
सम् + रक्षण = संरक्षण
सम् + राट = सम्राट
सम् + लग्न = संलग्न
सम् + लाप = संलाप
सम् + लिप्त = संलिप्त
सम् + वत् = संवत्
सम् + वाद = संवाद
सम् + शय = संशय
सम् + साधन = संसाधन
सम् + स्मरण = संस्मरण
सम् + हार = संहार

14. 'म' को 'न' या 'म' से युक्त करने के उपरांत 'म' दूसरे शब्द के पहले वर्ण में रूपांतरित हो जाता है परंतु अनुस्वार का प्रयोग नहींं होता है।

उदाहरण :

सम् + निधि = सन्निधि
सम् + मति = सम्मति
सम् + मोहन = सम्मोहन

15. 'मंत्री' शब्द को 'मंडल' या 'परिषद' से जोड़ने के उपरांत 'त्र' की मात्रा ह्स्व से दीर्घ हो जाता है।

उदाहरण :

मंत्री + मंडल = मंत्रिमंडल
मंत्री + परिषद = मंत्रिपरिषद

16. 'र' को 'र' से मेल करते समय प्रथम वर्ण 'र' का लोप हो जाता है तथा पहले शब्द का ह्स्व स्वर, दीर्घ रूप में परिणत हो जाता है।

उदाहरण :

निर् + रस = नीरस
निर् + रोग = नीरोग

17. ऋ,र,रि,ष को 'न' से जोड़ने पर 'न' का परिवर्तन 'ण' में होता है अर्थात न, 'ण' में बदल जाता है। परंतु उसके बाद 'च' वर्ग, 'ट' वर्ग, 'त' वर्ग के वर्ण या 'श' तथा 'स' होने पर न, 'ण' में नहीं बदलता है।

उदाहरण :

परि + नाम = परिणाम
मर् + न =मरण
भूष् + अन = भूषण
शोष् + अन = शोषण

18. उष्म व्यंजन वर्ण श/ष के साथ 'त' या 'थ' का मेल करने पर त,थ क्रमशः ट,ठ में परिवर्तित होता है अर्थात त, 'ट' में तथा थ, 'ठ' में बदल जाता है।

उदाहरण :

क्लिश् + त = क्लिष्ट
आकृष् + त = आकृष्ट
कष् + त = कष्ट
द्रष् + ता = द्रष्टा
दुष् + त = दुष्ट
दुष् + तता = दुष्टता
भ्रष् + त = भ्रष्ट
शिष् + त = शिष्ट
शिष् + तता = शिष्टता

काष् + थ = काष्ठ
पृष् + थ = पृष्ठ
षष् + थ = षष्ठ

19. 'सम्' या 'परि' उपसर्ग के साथ 'कृ' धातु या उससे बना कोई शब्द को जोड़ने पर वहाँ 'स' या 'ष' की उत्पत्ति होती है।

उदाहरण :

सम् + करण = संस्करण
सम् + कार = संस्कार
सम् + कृत = संस्कृत
परि + कार = परिष्कार
परि + कृत = परिष्कृत








Monday, December 2, 2019

Yan our ayadi sandhi

                 यण और अयादि स्वर संधि

यण स्वर संधि की परिभाषा :

यण स्वर संधि का उदाहरण :

अयादि स्वर संधि की परिभाषा :

अयादि स्वर संधि का उदाहरण :

यण स्वर संधि की परिभाषा :

यण स्वर संधि में इ/ई, उ/ऊ तथा ऋ को किसी भिन्न स्वर से जोड़ने पर वह क्रमशः य, व तथा र में बदल जाता है।

विस्तार से,


इस संधि में पहले शब्द का अंतिम स्वर वर्ण इ/ई, उ/ऊ तथा ऋ के साथ भिन्न स्वर के योग करने की स्थिति में इ/ई 'य' में उ/ऊ 'व' में तथा ऋ 'र' में परिवर्तित हो जाता है तथा दूसरे शब्द के पहले वर्ण के मात्रानुसार य,व और र में मात्रा का प्रयोग होता है।

जैसे :

अति + आवश्यक = अत्यावश्यक

उपरोक्त दोनों शब्दों में से पहला शब्द 'अति' का अंतिम स्वर वर्ण 'इ' है तथा दूसरा शब्द 'आवश्यक' का पहला भिन्न स्वर 'आ' है। दोनों को संयुक्त करने पर वह 'या' में बदल जाता है। जिससे 'अति' और 'आवश्यक' मिलकर 'अत्यावश्यक' हो जाता है।

यण संधि का उदाहरण :

इ + अ = य
इ + आ = या
इ + उ = यु
इ + ऊ = यू
इ + ए = ये
इ + ओ = यो
ई + आ = या

उ + अ = व
उ + आ = वा
उ + इ = वि
उ + ई = वी
उ + ए = वे
ऊ + आ = वा

ऋ + आ = रा 
ऋ + इ = रि
ऋ + उ = रु

( इ + अ = य )

आदि + अंत = आद्यंत
अति + अंत = अत्यंत
अति + अधिक = अत्यधिक
गति + अवरोध = गत्यवरोध
ध्वनि + अर्थ = ध्वन्यर्थ
प्रति + अय = प्रत्यय
प्रति + अक्ष = प्रत्यक्ष
यदि + अपि = यद्यपि
वि + अर्थ = व्यर्थ

( इ + आ = या )

अति + आचार = अत्याचार
अभि + आगत = अभ्यागत
इति + आदि = इत्यादि
गति + आत्मकता = गत्यात्मकता
ध्वनि + आत्मक = ध्वन्यात्मक
वि + आपक = व्यापक
वि + आप्त = व्याप्त
वि + आकुल = व्याकुल
वि + आयाम = व्यायाम
वि + आधि = व्याधि
वि + आघात = व्याघात

( इ + उ = यु )

अति + उत्तम = अत्युत्तम
अभि + उदय = अभ्युदय
उपरि + उक्त = उपर्युक्त
गीति + उपदेश = गीत्युपदेश
प्रति + उत्तर = प्रत्युत्तर
प्रति + उपकार = प्रत्युपकार
वि + उत्पत्ति = व्युत्पत्ति

( इ + ऊ = यू )

नि + ऊन = न्यून
वि + ऊह = व्यूह

( इ + ए = ये )

प्रति + एक = प्रत्येक

( इ + ओ = यो )

दधि + ओदन = दध्योदन

( ई + आ = या )

गौरी + आदेश = गौर्यादेश
देवी + आगम = देव्यागम
नदी + आगम = नद्यागम
सखी + आगमन = सख्यागमन

( उ + अ = व )

अनु + अय = अन्वय
पशु + आदि = पश्वादि
पशु + अधम = पश्वधम
मनु + अंतर = मन्वंतर
सु + अल्प = स्वल्प
सु + अच्छ = स्वच्छ
सु + अस्ति = स्वस्ति

( उ + आ = वा )

अनु + आसन = अन्वासन
मधु + आचार्य = मध्वाचार्य
मधु + आसव = मध्वासव
लघु + आहार = लघ्वाहार
सु + आगत = स्वागत

( उ + इ = वि )

अनु + इत = अन्वित
अनु + इति = अन्विति

( उ+ ई = वी )

अनु + ईक्षण = अन्वीक्षण

( उ + ए = वे )

अनु + एषण = अन्वेषण
अनु + एषक = अन्वेषक

( ऊ + आ = वा )

वधू + आगमन = वध्वागमन
वधू + आदेश = वध्वादेश

( ऋ+ आ =रा )

पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
पितृ + आलय = पित्रालय
पितृ + आदेश = पित्रादेश
मातृ + आदेश = मात्रादेश
मातृ + आनंद = मात्रानंद

( ऋ + इ = रि ) 

पितृ + इच्छा = पित्रिच्छा
मातृ + इच्छा = मात्रिच्छा

( ऋ + उ = रु )

पितृ + उपदेश = पित्रुपदेश
मातृ + उपदेश = मात्रुपदेश

अयादि स्वर संधि की परिभाषा :

अयादि स्वर संधि में ए, ऐ, ओ तथा औ के साथ कोई भिन्न स्वर को जोड़ने के उपरांत वह क्रमशः अय, आय, अव तथा आव में बदल जाता है।

विस्तृत रूप से,

इस संधि में ए, ऐ, ओ और औ के साथ कोई भिन्न स्वर का योग करने पर 'ए' अय में, 'ऐ' आय में, 'ओ' अव में तथा 'औ' आव में परिवर्तित हो जाता है एवं दूसरे शब्द के व्यंजन के पहले अय/ आय/ अव/ आव संयुक्त होकर एक नवीन शब्द का निर्माण करता है।

जैसे :

ने + अन = नयन  ( ए + अ = अय )

उपरोक्त दो शब्द 'ने' तथा 'अन' को सम्मिश्रण करने हेतु पहले शब्द का स्वर 'ए' और दूसरे शब्द का पहला स्वर 'अ' मिलकर 'अय' में रूपांतरित हो जाता है। उसके पश्चात पहले शब्द का शेष व्यंजन 'न' में 'अय' युक्त होकर दूसरे शब्द के शेष व्यंजन 'न' से जुड़कर एक नया शब्द 'नयन' को जन्म देता है।

ए + अ = अय
ऐ + अ = आय
ऐ + इ = आयि
ओ + अ = अव
ओ + इ = अवि
ओ + ई = अवी
औ + अ = आव 
औ + इ = आवि
औ + उ = अवु

अयादि स्वर संधि का उदाहरण :

( ए + अ = अय )

चे + अन = चयन
शे + अन = शयन

( ऐ + अ = आय )

गै + अक = गायक
गै + अन = गायन
नै + अक = नायक
शै + अक = शायक
शै + अर = शायर

( ऐ + इ = आयि )

गै + इका = गायिका
नै + इका = नायिका

( ओ + अ = अव )

पो + अन= पवन
भो + अन = भवन
श्रो + अन = श्रवण
लो + अन = लवण

( ओ + इ = अवि )

पो + इत्र = पवित्र

( ओ + ई = अवी )

गो + ईश = गवीश

( औ + अ = आव )

धौ + अक = धावक
पौ + अक = पावक
पौ + अन = पावन
रौ + अन = रावण
शौ + अक = शावक
श्रौ + अन = श्रावण

( औ + इ = आवि )

नौ + इक = नाविक

( औ + उ = आवु )

भौ + उक = भावुक





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