स्वास्थ्य का महत्व
स्वस्थता मनुष्य की पूँजी है। स्वास्थ्य के बिना मनुष्य की काया एक ढांचा मात्र होती है। स्वस्थता के अभाव मेंं कार्य संपादित करने की शक्ति बुरी तरह प्रभावित होती है। जीवन का आनंद प्राप्त करने हेतु स्वस्थ रहना अत्यंत आवश्यक है। स्वस्थरहित मनुष्य व्याधियुक्त होता है।
व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन के लिए स्वास्थ्य अति महत्वपूर्ण होता है। सही कहा गया है "स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का वास होता है।"
समाज का उत्पादक सदस्य होने के नाते हमें मन से जागरूक और तन से क्रियाशील रहने की आवश्यकता है। शरीर स्वस्थ होने से मन में अच्छे-अच्छे विचार एवं न्यायोचित निर्णय लेने की शक्ति का उद्भव होता है। व्यक्तित्व सुंदर और आकर्षक लगता है। नेतृत्व करने की क्षमता का विकास होता है। स्वस्थता के तत्व रोग की स्थिति को पैदा करने से रोकते हैं। ये हमें जटिल और जोखिम भरे कार्य करने हेतु शक्ति प्रदान करते हैं।ये कठिन परिस्थितियों से सामना करने के जज्बे को प्रोत्साहित करते हैं।
हम अपने जीवन में स्वस्थता के साथ सक्रिय और प्रसन्नचित रहते हैं। हमारे मन में सहयोग की भावना का उदय होता है। विकट परिस्थिति में व्याकुल न होकर सहनशीलता से उचित विकल्प का चयन करते हैं। इसके प्रभाव से सकारात्मक सोच विकसित होने के साथ चुनौतियों का मुकाबला करने हेतु उर्जा की प्राप्ति होती है। शरीर उष्मा को अवशोषित कर सफल निष्पादन करने का बल प्रदान करता है।
विपरीत वातावरण में समायोजन हेतु सुरक्षित एवं दृढ निश्चय के प्रेरणा का जन्म होता है। व्यस्त जीवन में दबाव व बाधा उत्पन्न करने वाले तत्व को नष्ट करने में सहायता मिलती है। गुणात्मक जीवन हेतु संयम और संतुष्टि के मनोभाव की उत्पत्ति होती है। इसलिए जीवन विज्ञान में स्वास्थ्य को महत्व प्रदान करते हुए आवश्यक अंग माना गया है।
स्वास्थ्य के विकास हेतु व्यवहार में बदलाव :
स्वस्थ और सुखी जीवन को प्रोन्नत करने के लिए हमें अपने जीवन शैली, सोच, और व्यवहार में परिवर्तन करने की आवश्यकता है।
जीवन के तरीकों और नियम में बदलाव कर व निम्न तत्वों का समावेश कर हम अपने स्वास्थ्य को मजबूती प्रदान कर सकते हैं।
योग :
हम अपने जीवन शैली में योग को शामिल कर उत्कृष्ट स्वास्थ्य को प्राप्त कर सकते हैं। दबाव एवं अवरोधों को कम करने के लिए शांति और आराम को अपनाकर शरीर को शिथिलता दे सकते हैं। लेटकर या आराम से बैठकर मांसपेशियों को व्यवस्थित रूप से तानने और ढीला छोड़ने की गतिविधि के साथ योग निद्रा का भी प्रयोग किया जा सकता है। इसके अंतर्गत कभी-कभी गहरी साँस लेकर, थोड़ा रोककर और फिर धीरे-धीरे छोड़कर शरीर को आराम प्रदान किया जा सकता है। इसके लिए प्राणायाम भी बहुत उपयोगी होता है।
धूम्रपान से हृदयरोग, फेफड़े के कैंसर की अधिक संभावना रहती है। तम्बाकू के प्रयोग से मुख कैंसर के साथ दाँत और मसूढे भी बुरी तरह प्रभावित होते हैं। यह मौखिक स्वच्छता के नष्ट होने का कारण होता है।
हम इन सभी बातों पर संवेदनशील होकर एवं एहतियात बरतकर अपने जीवन को स्वस्थता प्रदान कर सफल बना सकते हैं। स्वास्थ्य हमारे जीवन की अमूल्य संपत्ति है इसलिए इसकी रक्षा करना स्वयं का दायित्व है।
धन्यवाद।
व्यायाम :
नियमित व्यायाम करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखने में सहायता मिलती है। धीरे-धीरे दौड़ना, मध्यम गति से दौड़ना और साइकिल चलाना ये सभी व्यायाम के अंतर्गत आते हैं। इससे हृदयपेशी और माँसपेशी सशक्त होते हैं। इसके प्रभाव से शारीरिक श्रम की क्षमता में बढोतरी, उच्च रक्तचाप पर नियंत्रण के साथ सहनशक्ति और एकाग्रता में लाभ प्राप्त होता है।भोजन :
शाकाहारी और सुपाच्य भोजन ग्रहण करने की आदत बनानी चाहिए। बसा और कोलेस्ट्राल युक्त भोजन से परहेज कर अधिक से अधिक रेशेदार फल और सब्जी को उपयोग में लाकर हम अनेक रोगों के मार्ग को अवरुद्ध कर सकते हैं। खाने की शैली, पकाने के तरीके के साथ खाने की आदतों से भोजन पर नियंत्रण किया जा सकता है।वजन पर नियंत्रण :
पर्याप्त और संतुलित भोजन से हम अपने वजन पर अंकुश लगा सकते हैं। नियमित और समयानुकूल भोजन बहुत उपयोगी सिद्ध होता है। अनियमित भोजन अधिक बसा का एकत्रीकरण करता है जिससे मोटापा, रक्तचाप, हृदयरोग का खतरा पनपता है। मोटापा गंभीर बीमारी का पर्याय है। यद्यपि वजन नियंत्रण बहुत कठिन होता है। भोजन को कई हिस्सों में बाँटकर भिन्न-भिन्न समय में लेकर मोटापा को उपेक्षित किया जा सकता है। भोजन लेने के बाद टहलने की नियमित आदतें और महीने में एक या दो बार उपवास कर हम वजन पर काफी हद तक अंकुश लगा सकते हैं।नशामुक्त जीवन :
किसी तरह का नशा हो जो हमारे शरीर को नुकसान पँहुचाता है, विष के समान है। इसका व्यसन भिन्न-भिन्न तरह की बीमारियों को आमंत्रित करता है। सत्य कथन है " आ बैल मुझे मार।" यदि हम नशा का सेवन करेंगे तो बीमारी रूपी बैल मारेगा ही। यह हमारे दीर्घ जीवन को संक्षिप्त कर देते हैं। ऐसी आदतें जो समस्याएँ पैदा कर विनाश की ओर ले जाते हैं उसे अपने जीवन से निकाल बाहर फेक देना चाहिए। जो स्वास्थ्य के लिए जोखिम उपजाते हों उससे जीवन समाप्त होने के आसार बढ जाते हैं। अधिक मात्रा में इसका सेवन और अधिक विषैला होता है। लगातार इसके प्रयोग से स्वसन प्रणाली, आँत एवं यकृत के साथ शरीर के दूसरे अंगों को भी क्षतिग्रस्त करता है। खासकर शराब तो यकृत को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है।धूम्रपान से हृदयरोग, फेफड़े के कैंसर की अधिक संभावना रहती है। तम्बाकू के प्रयोग से मुख कैंसर के साथ दाँत और मसूढे भी बुरी तरह प्रभावित होते हैं। यह मौखिक स्वच्छता के नष्ट होने का कारण होता है।
हम इन सभी बातों पर संवेदनशील होकर एवं एहतियात बरतकर अपने जीवन को स्वस्थता प्रदान कर सफल बना सकते हैं। स्वास्थ्य हमारे जीवन की अमूल्य संपत्ति है इसलिए इसकी रक्षा करना स्वयं का दायित्व है।
धन्यवाद।
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