Saturday, December 21, 2019

Visarg sandhi

                       विसर्ग संधि

विसर्ग संधि की परिभाषा :

विसर्ग संधि के नियम : 

विसर्ग संधि का उदाहरण :

परिभाषा :

विसर्ग (:) को स्वर या व्यंजन से योग करने पर जो परिवर्तन होता है, उसे विसर्ग संधि कहा जाता है।

जैसे - नि: + चय = निश्चय 

उपरोक्त दो शब्द 'नि' और 'चय' का योग करते समय पहले शब्द का विसर्ग (:) का लोप हो जाता है तथा उसके स्थान पर 'श्' का प्रयोग कर 'निश्चय' शब्द का निर्माण होता है।

महत्पूर्ण बिंदु :

विसर्ग का प्रयोग शब्द के पूर्व होता है। बाद के शब्दों में इसकी कल्पना नही की जा सकती है।
इसमें भी कुछ नियमों का उपयोग किया जाता है।

1. नियम : ( विसर्ग का 'ओ' में परिवर्तन )

विसर्ग (:) के पहले 'अ' या 'आ' तथा बाद वाले शब्द में किसी भी वर्ग का तृतीय, चतुर्थ, पंचम अथवा अंतस्थ व्यंजन वर्ण य,र,ल,व तथा 'ह' के साथ योग करने पर विसर्ग 'ओ' में परिवर्तित हो जाता है।

जैसे - अधः + गति = अधोगति

उपरोक्त दो शब्द में पहला शब्द 'अधः' में विसर्ग के पहले 'अ' स्वर है, इसलिए 'अधः' शब्द का विसर्ग 'ओ' में परिणत हो जाता है। जिससे 'ध' ओ की मात्रा से अलंकृत होकर 'अधोगति' नामक नवीन शब्द बन जाता है।

उदाहरण :

उरः + ज = उरोज
तपः + भूमि = तपोभूमि
तपः + बल = तपोबल
तपः + वन = तपोवन
तपः + लाभ = तपोलाभ
तपः + ज्योति = तपोज्योति
तमः + गुण = तमोगुण
तेजः + पुंज = तेजोपुंज
तेजः + मय = तेजोमय
तेजः + राशि = तेजोराशि
पयः + द = पयोद
पयः + धि = पयोधि
पयः + धर = पयोधर
मनः + ज = मनोज
मनः + भाव = मनोभाव
मनः + गत = मनोगत
मनः + हर = मनोहर
मनः + विकार = मनोविकार
मनः + विनोद = मनोविनोद
मनः + कामना = मनोकामना
मनः + रथ = मनोरथ
मनः + रम = मनोरम
मनः + रंजन = मनोरंजन
मनः + विज्ञान = मनोविज्ञान
मनः + व्यथा = मनोव्यथा
मनः + नीत = मनोनीत
मनः + योग = मनोयोग
मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
यशः + दा = यशोदा
यशः + गान = यशोगान
यशः + गाथा = यशोगाथा
यशः + धरा = यशोधरा
शिरः + मणि =शिरोमणि
सरः + ज = सरोज
सरः + वर = सरोवर

2. नियम : ( विसर्ग का लोप होना )

विसर्ग से पहले 'अ' या 'आ' होने पर उसे 'अ' या 'आ' रहित भिन्न स्वर से योग करने पर विसर्ग का लोप हो जाता है।

जैसे - अतः + एव = अतएव
         ततः + एव = ततएव

3. नियम : ( विसर्ग का 'च' में परिवर्तन )

विसर्ग के पूर्व स्वर 'इ' या 'उ' होने पर तथा उसे 'च' या 'छ' के साथ संयुक्त करने पर विसर्ग 'च्' में परिवर्तित हो जाता है।

जैसे - विसर्ग ( : ) + छ् = च्

अनुः + छेद = अनुच्छेद
परिः + छेद = परिच्छेद

4. नियम : ( विसर्ग का 'र' में परिवर्तन )

विसर्ग से पूर्व 'अ' या 'आ' रहित कोई भिन्न स्वर के साथ तथा बाद के शब्द में किसी वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवा वर्ण या अ, आ, य, र, ल, व, ह का मेल होने पर विसर्ग 'र' में बदल जाता है।

जैसे - निः + आशा = निराशा

उपरोक्त पहले शब्द 'निः' में 'अ' या 'आ' से भिन्न स्वर है तथा बाद वाले शब्द में 'आ' स्वर है। दोनों के मिलने पर पहले शब्द का विसर्ग 'र' में रूपांतरित होकर एक नवीन शब्द 'निराशा' बन जाता है।

उदाहरण :

अहः + निश = अहर्निश
आशीः + वाद = आशीर्वाद
दुः + ग = दुर्ग
दुः + गुण = दुर्गुण
दुः + गति = दुर्गति
दुः + जन = दुर्जन
दुः + दिन = दुर्दिन
दुः + दशा = दुर्दशा
दुः + भाग्य = दुर्भाग्य
दुः + अवस्था = दुरवस्था
दुः + आत्मा = दुरात्मा
दुः + आशा = दुराशा
दुः + आचार = दुराचार
दुः + नीति = दुर्नीति
दुः + बुद्धि = दुर्बुद्धि
दुः + वह = दुर्वह
दुः + व्यवहार = दुर्व्यवहार
निः + उद्देश्य = निरुद्देश्य
निः + गंध = निर्गंध
निः + मल = निर्मल
निः + धन = निर्धन
निः + जन = निर्जन
निः + जल = निर्जल
निः + जला = निर्जला
निः + झर = निर्झर
निः + बल = निर्बल
निः + भर = निर्भर
निः + आशा = निराशा
निः + आधार = निराधार
निः + यात = निर्यात
निः + अर्थक = निरर्थक
निः + अक्षर = निरक्षर
निः + जीव = निर्जीव
निः + ईह = निरीह
निः + ईक्षण = निरीक्षण
निः + ईश्वर = निरीश्वर
निः + विवाद = निर्विवाद
निः + विकार = निर्विकार
निः + उपाय = निरुपाय
पुनः + अपि = पुनरपि
बहिः + मुख = बहिर्मुख
स्वः + ग = स्वर्ग

5. नियम : ( विसर्ग का 'र' में परिवर्तन )

विसर्ग के साथ पहला शब्द पुनः या अंंतः होने पर विसर्ग 'र' में परिवर्तित हो जाता है।

जैसे - पुनः + मुद्रण = पुनर्मुद्रण
         पुनः + जन्म = पुनर्जन्म
         अंतः + धान = अंतर्धान
         अंतः + निहित = अंतर्निहित

6. नियम : ( विसर्ग का 'श्' में परिवर्तन )

विसर्ग के पहले कोई स्वर के होने पर तथा उसके बाद के शब्द च, छ, श से योग करने पर विसर्ग 'श' में परिणत हो जाता है।

जैसे - विसर्ग ( : ) + च् = श्
         विसर्ग ( : ) + छ् = श्
         विसर्ग ( : ) + श् = श्

उदाहरण :

निः + चय = निश्चय
निः + चल = निश्चल
दुः + चरित्र = दुश्चरित्र
निः + छल = निश्छल
निः + शस्त्र = निश्शस्त्र
दुः + शासन = दुश्शासन

7. नियम : ( विसर्ग का 'ष्' में परिवर्तन )

विसर्ग के पूर्व 'इ' या 'उ' के साथ बाद के शब्द मेंं क, ख, ट, ठ, प, फ मेल का परिणाम 'ष्' होता है अर्थात विसर्ग ( : ) 'ष' में परिवर्तित हो जाता है।

जैसे - विसर्ग + क् = ष्
         विसर्ग + ख् = ष्
         विसर्ग + ट् = ष्
         विसर्ग + ठ् = ष्
         विसर्ग + प् = ष्
         विसर्ग + फ् = ष्

उदाहरण :

आविः + कार = आविष्कार
दुः + कर = दुष्कर
दुः + कर्म = दुष्कर्म
दुः + प्रकृति = दुष्प्रकृति
निः + कलंक = निष्कलंक
निः + काम = निष्काम
परिः + कार = परिष्कार
बहिः + कार = बहिष्कार
धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
चतुः + पथ = चतुष्पद
निः + पाप = निष्पाप
दुः + प्रभाव = दुष्प्रभाव
निः + प्राण = निष्प्राण
निः + फल = निष्फल

8.नियम : ( विसर्ग का 'स्' में परिवर्तन )

विसर्ग को क, त, थ, प, स के साथ जोड़ने पर विसर्ग 'स' में रूपांतरित हो जाता है।

जैसे - विसर्ग ( : ) + क् = स्
         विसर्ग ( : ) + त् = स्
         विसर्ग ( : ) + थ् = स्
         विसर्ग ( : ) + प् = स्
         विसर्ग ( : ) + स् = स्

उदाहरण :

नमः + कार = नमस्कार
पुरः + कार = पुरस्कार
नमः + ते = नमस्ते
भाः + कर = भास्कर
भाः + पति = भास्पति
मनः + ताप = मनस्ताप
निः + सृत = निस्सृत
निः + तेज = निस्तेज
अंतः + थ = अंतस्थ
निः + संदेह = निस्संदेह
निः + संतान = निस्संतान
निः + सहाय = निस्सहाय
निः + सार = निस्सार
दुः + तर = दुस्तर
दुः + साहस = दुस्साहस
श्रेयः + कर= श्रेयस्कर

9. नियम : ( विसर्ग लोप और दीर्घ स्वर का प्रयोग )

विसर्ग पूर्व ह्स्व स्वर होने पर तथा उसे 'र' से युक्त करने पर विसर्ग लुप्त होकर विसर्ग का पूर्व ह्स्व स्वर दीर्घ रूप में बदल जाता है।

उदाहरण :


निः + रज = नीरज
निः + रव = नीरव
निः + रस = नीरस
निः + रोग = नीरोग 

10. नियम : (विसर्ग का पूर्ववत् प्रयोग )

विसर्ग से पहले 'अ' स्वर होने पर तथा उसे क, ख, प, फ से जोड़ने पर विसर्ग का पूर्ववत् उपयोग होता है।

उदाहरण :

अधः + पतन = अधःपतन
अंतः + करण = अंतःकरण
अंतः + पुर = अंतःपुर
अंतः + सलिला = अंतःसलिला
दुः + ख = दुःख
दुः + स्वप्न = दुःस्वप्न
पयः + पान = पयःपान
प्रातः + काल = प्रातःकाल
यशः + पालन = यशःपालन
रजः + कण = रजःकण







Monday, December 16, 2019

Vyanjan sandhi

                        व्यंजन संधि

व्यंजन संधि की परिभाषा :

व्यंजन संधि का उदाहरण :

परिभाषा :

व्यंजन संधि में व्यंजन के साथ स्वर या व्यंजन का मेल करने पर जो परिवर्तन होता है, वह व्यंजन संधि कहलाता है।

जैसे : जगत् + ईश = जगदीश

उपरोक्त दो शब्द 'जगत्' और 'ईश' में पहला शब्द 'जगत' का अंतिम वर्ण 'त्' है तथा दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण 'ई' दीर्घ स्वर है। दोनों के जुड़ने पर 'त' अपने वर्ग के तीसरे रूप में परिवर्तित होकर 'जगदीश' बन जाता है।

महत्वपूर्ण बिंदु :

व्यंजन संधि में अनेक प्रकार के नियमों का प्रयोग किया जाता है। इसे समझने से पूर्व स्पर्श व्यंजन के वर्गों की पुनरावृत्ति आवश्यक है।
हिंदी वर्णमाला में स्पर्श व्यंजनों की संख्या पच्चीस है। स्पर्श व्यंजन को पाँच वर्गों में बाँटा गया है। प्रत्येक वर्ग का भिन्न - भिन्न नाम है।

कवर्ग = क ख ग घ ङ
चवर्ग = च छ ज झ ञ
टवर्ग = ट ठ ड ढ ण
तवर्ग = त थ द ध न
पवर्ग = प फ ब भ म
उपरोक्त वर्ग पाँच स्पर्श व्यंजनों के समूह हैं। प्रत्येक वर्ग के नाम उनके प्रथम वर्ण के आधार पर है। 

जैसे :

कवर्ग में पाँच स्पर्श व्यंजन क, ख, ग, घ, ङ आते हैं।

व्यंजन संधि के नियम निम्नलिखित हैं।

1. स्पर्श व्यंजन के साथ स्वर का मेल करने पर स्पर्श व्यंजन अपने वर्ग के तीसरे अक्षर के रूप में परिवर्तित हो जाता है अर्थात क्, च्, ट्, त्, प् के साथ स्वर के योग का परिणाम  क्रमशः ग, ज, ड, द, ब होता है या क् 'ग' में, च् 'ज' में, ट् 'ड' में, त् 'द' में तथा प् 'ब' में बदल जाता है।

जैसे =
क् + स्वर = ग
च् + स्वर = ज
ट् + स्वर = ड
त् + स्वर = द
प् + स्वर = ब

उदाहरण :

अच् + अंत = अजंत
अप् + आदान = अबादान
उत् + अन्त = उदन्त
उत् + अग्र = उदग्र
उत् + अय = उदय
कृत् + अन्त = कृदन्त
चित् + आनंद = चिदानंद
जगत् + आनंद = जगदानंद
जगत् + आधार = जगदाधार
जगत् + गुरु = जगद्गुरु
तत् + अर्थ = तदर्थ
तत् + अनुसार = तदनुसार
तत् + आकार = तदाकार
तत् + आत्म = तदात्म
तत् + आत्मा = तदात्मा
दिक् + अंत = दिगंत
दिक् + अंबर = दिगम्बर
दिक् + अंचल = दिगंचल
वाक् + ईश = वागीश
षट् + आनंद = षडानंद
सत् + आचार = सदाचार
सत् + आनंद = सदानंद
सत् + इच्छा = सदिच्छा
सम् + उत् + आय = समुदाय

2. किसी भी ह्स्व स्वर या 'आ' को 'छ' से जोड़ने पर वहाँ 'च्' की उत्पत्ति होती है अर्थात दोनों के बीच 'च्' का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण :

आ + छादन = आच्छादन
अनु + छेद = अनुच्छेद
जग् + छाया = जगच्छाया
परि + छेद = परिच्छेद
वि + छेद = विच्छेद
वृक्ष् + छाया = वृच्छाया
शिव् + छाया = शिवच्छाया
संधि + छेद = संधिच्छेद
स्व् + छंद = स्वच्छंद

3. अ/आ रहित किसी भी स्वर के साथ 'स' का योग करने का परिणाम 'ष' होता है अर्थात 'स' का परिवर्तन 'ष' में होता है।

उदाहरण :

अभि + सेक = अभिषेक
वि + सम = विषम
सु + सुप्त = सुषुप्त

4. 'न' या 'म' को किसी भी स्वर से योग करने पर किसी तरह का कोई बदलाव नहीं होता है बल्कि 'न' या 'म' में स्वर की मात्रा का प्रयोग होता है।

उदाहरण :

अन् + अन्य = अनन्य
अन् + अंत = अनंत
अन् + आगत = अनागत
अन् + आहार = अनाहार
धन् + आलय = धनालय
भोजन् + आलय = भोजनालय
शयन् + आगार = शयनागार
स्नान् + आगार = स्नानागार
प्रेम् + आलाप = प्रेमालाप
सम् + आहार = समाहार

5. म' के साथ स्वर वर्ण का मेल करने पर 'म' उसी स्वर की मात्रा से अलंकृत हो जाता है।

उदाहरण :

सम् + ईक्षा = समीक्षा
6. इसमें व्यंजन वर्ण के साथ व्यंजन वर्ण का मेल होता है। इसमें स्पर्श व्यंजन वर्ग का पहला वर्ण क,च,ट,त,प संधि करने के उपरांत वह अपने वर्ग के तीसरे वर्ण ग,ज,ड,द,ब में परिवर्तित हो जाता है।

उदाहरण :

अप् + ज = अब्ज
अप् + धि = अब्धि
अप् + नदी = अब्नद
अप् + माधुर्व = अब्माधुर्व
अप् + हरण = अब्भरण
अच् + हरण = अज्झरण
अच् + हीन = अज्झीन
अच् + लुप्त = अज्लुप्त
उत् + अंक = उदंक
उत् + गम = उद्गम
उत् + गार = उद्गार
उत् + घोष = उद्घोष
उत्+ घाटन = उद्घाटन
उत् + दंड = उद्दंड
उत् + भव = उद्भव
उत् + भास = उद्भास
उत् + मूलित = उन्मूलित
उत् + मीलित = उन्मीलित
उत्+ याम = उद्याम
उत् + योग = उद्योग
उत् + वर्तन = उद्वर्तन
उत् + विग्न = उद्विग्न
उत् + वेग = उद्वेग
कच् + जल = कज्जल
तत् + भव = तद्भव
तत् + रूप = तद्रूप
दिक् + गज = दिग्गज
दिक् + दर्शन = दिग्दर्शन
दिक् + भ्रम = दिग्भ्रम
भगवत् + गीता = भगवद्गीता
भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति
ऋक् + वेद = ऋग्वेद
वाक् + युद्ध = वाग्युद्ध
वाक् + दत्ता = वाग्दत्ता
षट् + दर्शन = षड्दर्शन
सत् + भावना = सद्भावना
सत् + काल = सद्काल
सत् + गति = सद्गति
सत् + वाणी = सदवाणी

7. वर्ग का पहला वर्ण क,च,ट,त,प को न/म से योग करने पर 'क्' का 'ङ', 'च्' का 'ञ', 'ट्' का 'ण', 'त्' का 'न' तथा 'प्' का 'म' हो जाता है।

उदाहरण :

अप् + मय = अम्मय
उत् + नति = उन्नति
उत् + नयन = उन्नयन
उत् + नायक = उन्नायक
उत् + मत्त = उन्मत्त
उत् + माद = उन्माद
उत् + मुख = उन्मुख
उत् + मूलन = उन्मूलन
चित् + मय = चिन्मय
जगत् + नाथ = जगन्नाथ
जगत् + माता = जगन्माता
तत् + नाम = तन्नाम
तत् + मय = तन्मय
तत् + मात्र = तन्मात्र
तत् + मित्र = तन्मित्र
दिक् + नाग = दिङ्नाग
रुच् + मय = रुञ्मय
वाक् + मय = वाङ्मय
षट् + मास = षण्मास
षट् + मुख = षण्मय
सत् + नारी = सन्नारी
सत् + मति = सन्मति
सत् + मार्ग = सन्मार्ग

8. किसी शब्द का अंतिम वर्ण 'त्' होने पर तथा उसे च,ज,ट,ड या ल से संयुक्त करने पर 'त्' दूसरे शब्द के पहले वर्ण के रूप में ढल जाता है।

उदाहरण :

उत् + चारण = उच्चारण
उत् + ज्वल = उज्ज्वल
उत् + डयन = उड्डयन
उत् + लास = उल्लास
उत् + लंघन = उल्लंघन
उत् + लेख = उल्लेख
जगत् + जननी = जगज्जननी
तत् + लीन = तल्लीन
वृहत् + टीका = वृहट्टीका
सत् + चरित्र = सच्चरित्र
सत् + जन = सज्जन

9. 'त्' के साथ 'छ' का योग करने पर त् 'च्' में परिणत हो जाता है।

उदाहरण :

उत् + छिन्न = उच्छिन्न
जगत् + छाया = जगच्छाया

10. 'त्' को 'श' से संयुक्त करने पर दोनों मिलकर ( त्+श = च्छ) में परिवर्तित हो जाता है।

उदाहरण :

उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट
उत् + श्वास = उच्छवास
उत् + श्रृंखल = उच्छृंखल
तत् + शिव = तच्छिव
सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र

11. 'त्' को 'ह' से जोड़ने पर दोनों युक्त होकर (त्+ह = द्ध) में बदल जाता है।

उदाहरण :

उत् + हार = उद्धार
उत् + हत = उद्धत
तत् + हित = तद्धित
पद् + हति = पद्धति

12. 'म' के साथ किसी भी स्पर्श व्यंजन का योग करने पर 'म' अपने ही वर्ग के पंचमाक्षर में रूपांतरित हो जाता है अर्थात 'क' का 'ङ', 'च' का 'ञ', 'ट' का 'ण', 'त' का 'न' तथा 'प' का 'म' हो जाता है। शब्द के अंत में अनुस्वार सदैव 'म' का ही रूप लेता है।

उदाहरण :

काम् + ति = कान्ति
किम् + कर = किङकर
किम् + चित = किंचित्
किम् + नर = किन्नर
गम् + तव्य = गंतव्य
परम् + तु = परन्तु
पम् + चम = पंचम
सम् + कर = शंकर
सम् + कलन = संकलन
शम् + का = शंका
सम् + कल्प = संकल्प
सम् + गत = संगत
सम् + गति = संगति
सम् + चय = संचय
सम् + चार = संचार 
सम् + जय = संजय
सम् + जीवन = संजीवन
सम् + तोष = संतोष
सम् + थाल = संथाल
सम् + देह = संदेह
सम् + गम = संगम
सम् + गठन = संगठन
सम् + कृति = संस्कृति
सम् + दीप = संदीप
सम् + ध्या = संध्या
सम् + बोधन = संबोधन
सम् + भव = संभव
सम् + भाषण = संभाषण
सम् + गीत = संगीत
सम् + ताप = संताप
सम् + धान = सन्धान
सम् + धि = संधि
सम् + बंध = संबंध
सम् + न्यासी = संन्यासी
सम् + कर्ता = संस्कर्ता
सम् + देश = संदेश
सम् + निहित = संनिहित
सम् + पूर्ण = सम्पूर्ण
सम् + बल = संबल

13. 'म्' को अंतस्थ या उष्म व्यंजन वर्ण य,र,ल,व,श,स,ह के साथ जोड़ने पर 'म्' अनुस्वार में परिवर्तित हो जाता है तथा 'म्' और 'र' के योग में किसी-किसी शब्द में 'म्' में पदेन का प्रयोग होता है।

जैसे = म् + र = म्र

उदाहरण :

सम् + योग = संयोग
सम् + यम = संयम
सम् + रक्षक = संरक्षक
सम् + रक्षण = संरक्षण
सम् + राट = सम्राट
सम् + लग्न = संलग्न
सम् + लाप = संलाप
सम् + लिप्त = संलिप्त
सम् + वत् = संवत्
सम् + वाद = संवाद
सम् + शय = संशय
सम् + साधन = संसाधन
सम् + स्मरण = संस्मरण
सम् + हार = संहार

14. 'म' को 'न' या 'म' से युक्त करने के उपरांत 'म' दूसरे शब्द के पहले वर्ण में रूपांतरित हो जाता है परंतु अनुस्वार का प्रयोग नहींं होता है।

उदाहरण :

सम् + निधि = सन्निधि
सम् + मति = सम्मति
सम् + मोहन = सम्मोहन

15. 'मंत्री' शब्द को 'मंडल' या 'परिषद' से जोड़ने के उपरांत 'त्र' की मात्रा ह्स्व से दीर्घ हो जाता है।

उदाहरण :

मंत्री + मंडल = मंत्रिमंडल
मंत्री + परिषद = मंत्रिपरिषद

16. 'र' को 'र' से मेल करते समय प्रथम वर्ण 'र' का लोप हो जाता है तथा पहले शब्द का ह्स्व स्वर, दीर्घ रूप में परिणत हो जाता है।

उदाहरण :

निर् + रस = नीरस
निर् + रोग = नीरोग

17. ऋ,र,रि,ष को 'न' से जोड़ने पर 'न' का परिवर्तन 'ण' में होता है अर्थात न, 'ण' में बदल जाता है। परंतु उसके बाद 'च' वर्ग, 'ट' वर्ग, 'त' वर्ग के वर्ण या 'श' तथा 'स' होने पर न, 'ण' में नहीं बदलता है।

उदाहरण :

परि + नाम = परिणाम
मर् + न =मरण
भूष् + अन = भूषण
शोष् + अन = शोषण

18. उष्म व्यंजन वर्ण श/ष के साथ 'त' या 'थ' का मेल करने पर त,थ क्रमशः ट,ठ में परिवर्तित होता है अर्थात त, 'ट' में तथा थ, 'ठ' में बदल जाता है।

उदाहरण :

क्लिश् + त = क्लिष्ट
आकृष् + त = आकृष्ट
कष् + त = कष्ट
द्रष् + ता = द्रष्टा
दुष् + त = दुष्ट
दुष् + तता = दुष्टता
भ्रष् + त = भ्रष्ट
शिष् + त = शिष्ट
शिष् + तता = शिष्टता

काष् + थ = काष्ठ
पृष् + थ = पृष्ठ
षष् + थ = षष्ठ

19. 'सम्' या 'परि' उपसर्ग के साथ 'कृ' धातु या उससे बना कोई शब्द को जोड़ने पर वहाँ 'स' या 'ष' की उत्पत्ति होती है।

उदाहरण :

सम् + करण = संस्करण
सम् + कार = संस्कार
सम् + कृत = संस्कृत
परि + कार = परिष्कार
परि + कृत = परिष्कृत








Monday, December 2, 2019

Yan our ayadi sandhi

                 यण और अयादि स्वर संधि

यण स्वर संधि की परिभाषा :

यण स्वर संधि का उदाहरण :

अयादि स्वर संधि की परिभाषा :

अयादि स्वर संधि का उदाहरण :

यण स्वर संधि की परिभाषा :

यण स्वर संधि में इ/ई, उ/ऊ तथा ऋ को किसी भिन्न स्वर से जोड़ने पर वह क्रमशः य, व तथा र में बदल जाता है।

विस्तार से,


इस संधि में पहले शब्द का अंतिम स्वर वर्ण इ/ई, उ/ऊ तथा ऋ के साथ भिन्न स्वर के योग करने की स्थिति में इ/ई 'य' में उ/ऊ 'व' में तथा ऋ 'र' में परिवर्तित हो जाता है तथा दूसरे शब्द के पहले वर्ण के मात्रानुसार य,व और र में मात्रा का प्रयोग होता है।

जैसे :

अति + आवश्यक = अत्यावश्यक

उपरोक्त दोनों शब्दों में से पहला शब्द 'अति' का अंतिम स्वर वर्ण 'इ' है तथा दूसरा शब्द 'आवश्यक' का पहला भिन्न स्वर 'आ' है। दोनों को संयुक्त करने पर वह 'या' में बदल जाता है। जिससे 'अति' और 'आवश्यक' मिलकर 'अत्यावश्यक' हो जाता है।

यण संधि का उदाहरण :

इ + अ = य
इ + आ = या
इ + उ = यु
इ + ऊ = यू
इ + ए = ये
इ + ओ = यो
ई + आ = या

उ + अ = व
उ + आ = वा
उ + इ = वि
उ + ई = वी
उ + ए = वे
ऊ + आ = वा

ऋ + आ = रा 
ऋ + इ = रि
ऋ + उ = रु

( इ + अ = य )

आदि + अंत = आद्यंत
अति + अंत = अत्यंत
अति + अधिक = अत्यधिक
गति + अवरोध = गत्यवरोध
ध्वनि + अर्थ = ध्वन्यर्थ
प्रति + अय = प्रत्यय
प्रति + अक्ष = प्रत्यक्ष
यदि + अपि = यद्यपि
वि + अर्थ = व्यर्थ

( इ + आ = या )

अति + आचार = अत्याचार
अभि + आगत = अभ्यागत
इति + आदि = इत्यादि
गति + आत्मकता = गत्यात्मकता
ध्वनि + आत्मक = ध्वन्यात्मक
वि + आपक = व्यापक
वि + आप्त = व्याप्त
वि + आकुल = व्याकुल
वि + आयाम = व्यायाम
वि + आधि = व्याधि
वि + आघात = व्याघात

( इ + उ = यु )

अति + उत्तम = अत्युत्तम
अभि + उदय = अभ्युदय
उपरि + उक्त = उपर्युक्त
गीति + उपदेश = गीत्युपदेश
प्रति + उत्तर = प्रत्युत्तर
प्रति + उपकार = प्रत्युपकार
वि + उत्पत्ति = व्युत्पत्ति

( इ + ऊ = यू )

नि + ऊन = न्यून
वि + ऊह = व्यूह

( इ + ए = ये )

प्रति + एक = प्रत्येक

( इ + ओ = यो )

दधि + ओदन = दध्योदन

( ई + आ = या )

गौरी + आदेश = गौर्यादेश
देवी + आगम = देव्यागम
नदी + आगम = नद्यागम
सखी + आगमन = सख्यागमन

( उ + अ = व )

अनु + अय = अन्वय
पशु + आदि = पश्वादि
पशु + अधम = पश्वधम
मनु + अंतर = मन्वंतर
सु + अल्प = स्वल्प
सु + अच्छ = स्वच्छ
सु + अस्ति = स्वस्ति

( उ + आ = वा )

अनु + आसन = अन्वासन
मधु + आचार्य = मध्वाचार्य
मधु + आसव = मध्वासव
लघु + आहार = लघ्वाहार
सु + आगत = स्वागत

( उ + इ = वि )

अनु + इत = अन्वित
अनु + इति = अन्विति

( उ+ ई = वी )

अनु + ईक्षण = अन्वीक्षण

( उ + ए = वे )

अनु + एषण = अन्वेषण
अनु + एषक = अन्वेषक

( ऊ + आ = वा )

वधू + आगमन = वध्वागमन
वधू + आदेश = वध्वादेश

( ऋ+ आ =रा )

पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
पितृ + आलय = पित्रालय
पितृ + आदेश = पित्रादेश
मातृ + आदेश = मात्रादेश
मातृ + आनंद = मात्रानंद

( ऋ + इ = रि ) 

पितृ + इच्छा = पित्रिच्छा
मातृ + इच्छा = मात्रिच्छा

( ऋ + उ = रु )

पितृ + उपदेश = पित्रुपदेश
मातृ + उपदेश = मात्रुपदेश

अयादि स्वर संधि की परिभाषा :

अयादि स्वर संधि में ए, ऐ, ओ तथा औ के साथ कोई भिन्न स्वर को जोड़ने के उपरांत वह क्रमशः अय, आय, अव तथा आव में बदल जाता है।

विस्तृत रूप से,

इस संधि में ए, ऐ, ओ और औ के साथ कोई भिन्न स्वर का योग करने पर 'ए' अय में, 'ऐ' आय में, 'ओ' अव में तथा 'औ' आव में परिवर्तित हो जाता है एवं दूसरे शब्द के व्यंजन के पहले अय/ आय/ अव/ आव संयुक्त होकर एक नवीन शब्द का निर्माण करता है।

जैसे :

ने + अन = नयन  ( ए + अ = अय )

उपरोक्त दो शब्द 'ने' तथा 'अन' को सम्मिश्रण करने हेतु पहले शब्द का स्वर 'ए' और दूसरे शब्द का पहला स्वर 'अ' मिलकर 'अय' में रूपांतरित हो जाता है। उसके पश्चात पहले शब्द का शेष व्यंजन 'न' में 'अय' युक्त होकर दूसरे शब्द के शेष व्यंजन 'न' से जुड़कर एक नया शब्द 'नयन' को जन्म देता है।

ए + अ = अय
ऐ + अ = आय
ऐ + इ = आयि
ओ + अ = अव
ओ + इ = अवि
ओ + ई = अवी
औ + अ = आव 
औ + इ = आवि
औ + उ = अवु

अयादि स्वर संधि का उदाहरण :

( ए + अ = अय )

चे + अन = चयन
शे + अन = शयन

( ऐ + अ = आय )

गै + अक = गायक
गै + अन = गायन
नै + अक = नायक
शै + अक = शायक
शै + अर = शायर

( ऐ + इ = आयि )

गै + इका = गायिका
नै + इका = नायिका

( ओ + अ = अव )

पो + अन= पवन
भो + अन = भवन
श्रो + अन = श्रवण
लो + अन = लवण

( ओ + इ = अवि )

पो + इत्र = पवित्र

( ओ + ई = अवी )

गो + ईश = गवीश

( औ + अ = आव )

धौ + अक = धावक
पौ + अक = पावक
पौ + अन = पावन
रौ + अन = रावण
शौ + अक = शावक
श्रौ + अन = श्रावण

( औ + इ = आवि )

नौ + इक = नाविक

( औ + उ = आवु )

भौ + उक = भावुक





Thursday, November 28, 2019

Gun our vriddhi sandhi

               गुण और वृद्धि स्वर संधि

गुण स्वर संधि की परिभाषा :

गुण स्वर संधि का उदाहरण :

वृद्धि स्वर संधि की परिभाषा :

वृद्धि स्वर संधि का उदाहरण :

गुण स्वर संधि की परिभाषा : 

गुण स्वर संधि में 'अ' या 'आ' से  इ / ई , उ / ऊ  तथा 'ऋ' का मेल होने का परिणाम अर्थात उसके स्थान पर क्रमशः ए , ओ तथा अर का प्रयोग होता है।

जैसे :

देव + इंद्र = देवेंद्र           (अ + इ = ए)

उपरोक्त दो शब्द 'देव' तथा 'इंद्र' के संधि हेतु पहला शब्द 'देव' का अंतिम स्वर 'अ' तथा दूसरा शब्द 'इंद्र' का प्रथम स्वर वर्ण 'इ' के योग करने पर 'ए' में बदल जाता है और पहले शब्द का अंतिम व्यंजन में 'ए' की मात्रा लगकर 'वे' हो जाता है जिससे देव और इंद्र के जुड़ने पर 'देवेंद्र' हो जाता है। इसी अनुसार निम्न शब्दों का भी निर्माण होता है।

गण +ईश = गणेश         (अ + ई = ए)
महा + इंद्र = महेंद्र          (आ + इ = ए)
महा + ईश = महेश।      (आ + ई = ए)
चंद्र + उदय = चंद्रोदय    (अ + उ = ओ)
जल + ऊर्मि = जलोर्मि    (अ + ऊ = ओ)
महा+ उदय = महोदय     (आ + उ = ओ)
गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि     (आ + ऊ = ओ)
देव + ऋषि = देवर्षि        (अ + ऋ = अर)
महा + ऋषि = महर्षि       (आ + ऋ = अर)

निम्नलिखित संधि में दो शब्दों में से पहले शब्द के अंत में 'अ' या 'आ' हो तथा दूसरे शब्द का प्रथम शब्द 'इ' या 'ई' हो तब दोनों के योग करने पर वह 'ए' में परिवर्तित हो जाता है। साथ ही प्रथम शब्द का अंतिम व्यंजन 'ए' की मात्रा से सुशोभित हो जाता है।

गुण स्वर संधि का उदाहरण :

अ + इ = ए
अ + ई = ए
आ + इ = ए
आ + ई = ए

(अ + इ = ए)

ईश्वर + इच्छा = ईश्वरेच्छा
खग + इंद्र = खगेंद्र
गज + इंद्र = गजेंद्र
जित + इंद्र =जितेंद्र
दर्शन + इच्छा = दर्शनेच्छा
नर + इंद्र = नरेंद्र
नाग + इंद्र = नागेंद्र
फल + इच्छा = फलेच्छा
बाल + इंद्र = बालेंद्र
भुजंग + इंद्र = भुजगेंद्र
मृग + इंद्र = मृगेंद्र
योग + इंद्र = योगेंद्र
राघव+ इंद्र = राघवेंद्र
विजय + इच्छा = विजयेच्छा
वीर + इंद्र = वीरेंद्र
शिव + इंद्र = शिवेंद्र
शुभ + इच्छा = शुभेच्छा
सुर + इंद्र = सुरेंद्र
ज्ञान + इंद्र = ज्ञानेंद्र

(अ + ई = ए)

उप + ईक्षा = उपेक्षा
एक + ईश्वर = एकेश्वर
कमल+ ईश = कमलेश
खग + ईश = खगेश
खग + ईश्वर = खगेश्वर
तारक + ईश = तारकेश
तारक + ईश्वर = तारकेश्वर
तप + ईश्वर = तपेश्वर
देव + ईश = देवेश
धन + ईश = धनेश
नाग + ईश = नागेश
नर + ईश = नरेश
नक्षत्र + ईश = नक्षत्रेश
परम + ईश्वर = परमेश्वर
पर्वत + ईश्वर = पर्वतेश्वर
प्राण + ईश्वर =प्राणेश्वर
ब्रज + ईश = ब्रजेश
भुवन + ईश्वर = भुवनेश्वर
भूत + ईश = भूतेश
भूत + ईश्वर = भूतेश्वर
राम + ईश्वर = रामेश्वर
रावण + ईश्वर = रावणेश्वर
लोक + ईश = लोकेश
लोक + ईश्वर = लोकेश्वर
वाम + ईश्वर = वामेश्वर
सर्व + ईश = सर्वेश
सर्व +ईश्वर = सर्वेश्वर
सुर + ईश = सुरेश
ज्ञान + ईश = ज्ञानेश
ज्ञान + ईश्वर = ज्ञानेश्वर

(आ + इ = ए)

यथा + इष्ट = यथेष्ट
रमा + इंद्र = रमेंद्र
राजा + इंद्र = राजेंद्र

(आ + ई = ए)

ऊर्मिला + ईश = ऊर्मिलेश
उमा + ईश = उमेश
गंगा + ईश = गंगेश
रमा + ईश = रमेश
राका + ईश = राकेश
लंका + ईश = लंकेश
लंका + ईश्वर = लंकेश्वर

नीचे दिए गए संधि में 'अ' या 'आ' को 'उ' या 'ऊ' से योग करने पर वह 'ओ' में बदल जाता है तथा पहले शब्द के आखिरी व्यंजन में 'ओ' की मात्रा लग जाता है।

(अ + उ = ओ)
(अ + ऊ = ओ)
(आ + उ = ओ)
(आ + ऊ = ओ)

(अ + उ = ओ)

आत्म + उत्सर्ग = आत्मोत्सर्ग
अर्थ + उपार्जन = अर्थोपार्जन
आनंद + उत्सव = आनंदोत्सव
कर्ण + उद्धार = कर्णोद्धार
ग्राम + उद्धार = ग्रामोद्धार
ग्राम + उद्योग = ग्रामोद्योग
जन्म + उत्सव = जन्मोत्सव
डिम्ब + उद्घोष = डिम्बोद्घोष
दीप + उत्सव = दीपोत्सव
देव + उत्थान = देवोत्थान
धर्म + उपदेश = धर्मोपदेश
धीर + उदात्त + धीरोदात्त
धीर + उद्धत = धीरोद्धत
नव + उदय = नवोदय
नील + उत्पल = नीलोत्पल
पद + उन्नति = पदोन्नति
पर + उपकार = परोपकार
पश्चिम + उतर = पश्चिमोत्तर
पुरूष + उत्तम = पुरूषोत्तम
पूर्व + उदय = पूर्वोदय 
पूर्व + उत्तर = पूर्वोत्तर
प्र + उत्साहन = प्रोत्साहन
पुष्प + उद्यान = पुष्पोद्यान
फल +उदय = फलोदय
फेन + उज्ज्वल = फेनोज्ज्वल
भाग्य + उदय = भाग्योदय
मद + उन्मत्त = मदोन्मत्त
मरण + उपरांत = मरणोपरांत
लोक + उक्ति = लोकोक्ति
लुप्त + उपमा = लुप्तोमा
लोक + उत्तर = लोकोत्तर
वन + उत्सव = वनोत्सव
वसंत + उत्सव = वसंतोत्सव
विकास +उत्सव = विकासोत्सव
विकास + उन्मुख = विकासोन्मुख
विचार + उचित = विचारोचित
षोड्श + उपचार = षोड्शोपचार
सर्व + उच्च = सर्वोच्च
सर्व + उदय = सर्वोदय
सर्व + उत्तम = सर्वोत्तम
सुर + उद्यान = सुरोद्यान
सूर्य + उदय = सूर्योदय
हर्ष + उल्लास = हर्सोल्लास
हित + उपदेश = हितोपदेश

(अ+ ऊ = ओ)

नव + ऊढा = नवोढा
समुद्र + ऊर्मि = समुद्रोर्मि

(आ + उ = ओ)

गंगा + उदक = गंगोदक
चिंता + उन्मुक्त = चिंतोन्मुक्त
झंडा + उत्तोलन = झंडोत्तोलन
ध्वजा + उत्तोलन = ध्वजोत्तोलन
महा + उत्सव = महोत्सव
महा + उपदेश = महोपदेश
यथा + उचित = यथोचित
लंबा + उदर = लंबोदर
विद्या + उपार्जन = विद्योपार्जन

(आ + ऊ = ओ)

धारा + ऊष्ण = धारोष्ण

निम्नांकित संधि में 'अ' या 'आ' को 'ऋ' से जोड़ने पर  'अर' में रूपांतरित होकर प्रथम शब्द के अंतिम व्यंजन 'अर' से युक्त हो जाता है। 

(अ + ऋ = अर)

ब्रह्म + ऋषि = ब्रह्मर्षि
सप्त + ऋषि = सप्तर्षि
सुख + ऋत = सुखार्त

(आ + ऋ = अर)

राजा + ऋषि = राजर्षि

वृद्धि स्वर संधि की परिभाषा :

वृद्धि स्वर संधि में अ/आ के साथ ए/ऐ का मेल होने पर 'ऐ' तथा ओ/औ का मेल होने पर 'औ' का रूप ग्रहण करने के साथ पहले शब्द का अंतिम व्यंजन क्रमशः ऐ, औ की मात्रा से युक्त हो जाता है।

विस्तारपूर्वक,

इसमें दो शब्दों की संधि हेतु पहले शब्द का अंतिम स्वर वर्ण 'अ' या 'आ' के साथ दूसरे शब्द का पहला स्वर वर्ण 'ए'या'ऐ' के योग का परिणाम 'ऐ'हो जाता है तथा इसी तरह  अ/आ से 'ओ' या 'औ' का योग करने का परिणाम 'औ' हो जाता है। उसके उपरांत पहले शब्द का अंतिम व्यंजन परिवर्तित स्वर वर्ण की मात्रानुसार ऐ/औ से अलंकृत हो जाता है।

जैसे :

एक + एक = एकैक  (अ + ए = ऐ)

उपरोक्त दो शब्दों में से प्रथम शब्द 'एक' का अंतिम स्वर 'अ' है। दूसरे शब्द 'एक' का प्रथम स्वर वर्ण 'ए' है। दोनों को जोड़ने पर वह 'ऐ' का रूप धारण करता है। उसके पश्चात प्रथम शब्द का अंतिम व्यंजन 'क' में 'ऐ' की मात्रा लगकर एवं 'एक' और 'एक' संयुक्त होकर 'एकैक' हो जाता है।

अ + ए = ऐ
अ + ऐ = ऐ
आ + ए = ऐ
आ + ऐ = ऐ
अ + ओ = औ
आ + ओ = औ
अ + औ = औ
आ + औ = औ

वृद्धि स्वर संधि का उदाहरण :

( अ + ए = ऐ )

अद्य + एव = अद्यैयैव
परम + एषणा = परमैषणा
लोक + एषणा = लोकैषणा

( अ + ऐ = ऐ )

टिक + ऐत = टिकैत
भाव + ऐश्वर्य = भावैश्वर्य
मत + ऐक्य = मतैक्य
हित + ऐषी = हितैषी

( आ + ए = ऐ )

तथा + एव = तथैव
वसुधा + एव = वसुधैव
सदा + एव = सदैव

( आ + ऐ = ऐ )

गंगा + ऐश्वर्य = गंगैश्वर्य
महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
राजा + ऐश्वर्य = राजैश्वर्य

( अ + ओ = औ )

अधर + ओष्ठ = अधरौष्ठ
जल + ओध = जलौध
परम + ओज = परमौज
बिम्ब + ओष्ठ = बिम्बौष्ठ

( आ + ओ = औ )

गंगा + ओध = गंगौध
महा + ओज = महौज
महा + ओजस्वी = महौजस्वी

( अ + औ = औ )

गृह + औत्सक्य = गृहौत्सक्य
परम + औदार्य = परमौदार्य
परम + औषध = परमौषध
परम + औषधि = परमौषधि
वन + औषध = वनौषध
वन + औषधि = वनौषधि
सुर + औदार्य = सुरौदार्य

( आ + औ = औ )

महा + औषध = महौषध
महा + औषधि = महौषधि
महा + औत्सक्य = महौत्सक्य




























Sunday, November 24, 2019

Sandhi our Dirgha sandhi

                    संधि और दीर्घ संधि

  • संधि का अर्थ :
  • संधि की परिभाषा :
  • संधि विच्छेद :
  • संधि के प्रकार :
  • दीर्घ स्वर संधि :
संधि का अर्थ :
सम् + धि = संधि (मेल या मिलाप )
संधि का अर्थ वर्णों का जोड़, वर्णों का मेल या वर्णों के बीच समझौता करना होता है।

संधि की परिभाषा :                                          

दो वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार अर्थात परिवर्तन होता है, इस प्रक्रिया को संधि कहते हैं।

दूसरे तरह से,

जब दो शब्दांश या शब्द परस्पर योग करते हैं तो स्वर और व्यंजन में जो बदलाव आता है, वह संधि कहलाता है।

दो वर्ण एक दूसरे से मिलने हेतु नजदीक आते हैं तो इनकी निकटता को 'संहिता' कहते हैं।

उदाहरण : भाव + अर्थ = भावार्थ

उपरोक्त दो शब्द 'भाव' एवं 'अर्थ' का संधि करने हेतु सर्वप्रथम प्रत्येक शब्द का वर्ण विच्छेद करेंगे।

भाव का वर्ण विच्छेद = भ् + आ + व् + अ
अर्थ का वर्ण विच्छेद = अ + र्  + थ् + अ

इन दोनों शब्दांशो को जोड़ने हेतु 'भाव' के वर्ण विच्छेद का अंतिम वर्ण 'अ' तथा 'अर्थ' के वर्ण विच्छेद का प्रथम वर्ण 'अ' को लिया जाता है। दोनों का मेल करने पर 'आ' में बदल जाता है। इसके पश्चात प्रथम शब्द का अंतिम व्यंजन 'व' में आ की मात्रा लगकर 'वा' हो जाता है। 

ये दोनों ह्स्व वर्णोंं का मेल करने पर दीर्घ वर्ण 'आ' के रूप में परिवर्तित हो जाता है जिसका संधि 'भावार्थ' होगा।

साधारण शब्दों में, प्रथम शब्द का अंतिम तथा दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण को मिलाकर संधि किया जाता है।

उदाहरण : हिम + आलय = हिमालय

संधि विच्छेद :

संधि को तोड़ना, अलग करना या विखंडित करना संधि विच्छेद कहलाता है।

जैसे : शिवालय = शिव + आलय
         ग्रंथालय  =  ग्रंथ + आलय

संधि के प्रकार : 


संधि तीन प्रकार के होते हैं।

(क) स्वर संधि
(ख) व्यंजन संधि
(ग) विसर्ग संधि

(क) स्वर संधि की परिभाषा :

दो स्वर वर्णों के मेल से जो विकार उत्पन्न होता है उसे स्वर संधि कहते हैं।

जैसे :  देव + आलय = देवालय

'देव' शब्दांश के अंत में 'अ' तथा 'आलय' के प्रारंभ में 'आ' स्वर हैं। 'अ' तथा 'आ' के योग से 'अ' दीर्घ रूप 'आ' में बदल जाता है। इस तरह 'देव' का अंतिम वर्ण 'व', ' वा'में परिवर्तित होकर देवालय शब्द बन जाता है।

स्वर संधि के भेद :

स्वर संधि के पाँच भेद होते हैं।
(1) दीर्घ स्वर संधि
(2) गुण स्वर संधि
(3) वृद्धि स्वर संधि
(4) यण स्वर संधि
(5) अयादि स्वर संधि

(1) दीर्घ स्वर संधि :

जब ह्स्व या दीर्घ स्वर अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ के साथ ह्स्व या दीर्घ स्वर अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ का मेल होता है तब दीर्घ रूप आ, ई, ऊ, ऋ  में विकार उत्पन्न होता है अर्थात वह दीर्घ रूप में बदल जाता है। अतः इस तरह के परिवर्तन को दीर्घ स्वर संधि कहते हैं।

निम्नांकित उदाहरण में ह्स्व स्वर 'अ' तथा ह्स्व स्वर 'अ' संयुक्त होकर दीर्घ स्वर 'आ' का रूप धारण करते हैं। उसके पश्चात प्रथम शब्द का अंतिम व्यंजन  'आ' की मात्रा से सुसज्जित होकर एक नवीन शब्द का निर्माण करता है।

(अ + अ = आ ) 

अधिक + अंश = अधिकांश                                 अन्न  + अभाव = अन्नाभाव  
अन्य  + अन्य  = अन्यान्य     
अयन + अंश   = अयनांश
अस्त + अचल = अस्ताचल
उत्तर + अयन = उत्तरायण
उदय + अचल = उदयाचल
एक + अंकी = एकांकी    
करूण + अमृत = करूणामृत
क्रम    + अनुसार = क्रमानुसार
कूर्म + अवतार = कूर्मावतार
काम   + अन्य = कामान्य
काम + अरि = कामारि
काल + अंतर = कालांतर
काल + अग्नि = कालाग्नि
केशव + अरि = केशवारि
क्रोध + अग्नि = क्रोधाग्नि
कंस + अरि = कंसारि
कल्प + अंत = कल्पांत
कोमल + अंगी = कोमलांगी
केश + अंत = केशांत
कौरव + अरि = कौरवारि
कृष्ण + अवतार = कृष्णावतार
गीत + अंजली = गीतांजली
गोत्र + अध्याय = गोत्राध्याय
गौरव + अन्वित = गौरवान्वित
घन + अंधकार = घनांधकार
चरण + अरविंद = चरणाविंद
चरण + अमृत = चरणामृत
चरित्र + अंकन = चरित्रांकन
चित्र + अंकन = चित्रांकन
छात्र + अवकाश = छात्रावकाश
जन्म + अंतर = जन्मांंतर
जनक + अंगजा = जनकांगजा
जीर्ण + अंचल = जीर्णांचल
ज्ञान + अभाव =ज्ञानाभाव
ज्ञान + अंजन = ज्ञानांजन
तिमिर + अरि = तिमिरारि
तुरीय + अवस्था = तुरीयावस्था
त्रिगुण + अतीत = त्रिगुणातीत
दर्शन + अर्थ = दर्शनार्थ
दाव +अग्नि = दावाग्नि
दाव + अनल = दावानल
देश + अटन = देशाटन
देश + अंतर = देशांतर
दंडक + अरण्य = दंडकारण्य
दक्षिण + अयन = दक्षिणायन
दानव + अरि = दानवारि
दास + अनुदास = दासानुदास
दिन + अंक = दिनांक
दिन + अंत = दिनांत
दिव्य + अस्त्र = दिव्यास्त्र
दीप + अवली = दीपावली
देव + अंगना = देवांगना
देव + अर्चन = देवार्चन
देव + अंशु = देवांशु
दैत्य + अरि = दैत्यारि
धर्म + अधिकारी = धर्माधिकारी
धर्म + अंध = धर्मांध
धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
धन + अधीश = धनाधीश
धन + अभाव = धनाभाव
धर्म + अधर्म = धर्माधर्म
धर्म + अवतार =धर्मावतार
नर + अयन = नारायण
नाग + अधिराज = नागाधिराज
निम्न + अंकित = निम्नांकित
नियम + अवली = नियमावली
नील + अंजल = नीलांजल
नील + अंबर = नीलांबर
नयन + अम्बु = नयनाम्बु
नयन + अभिराम = नयनाभिराम
पंच + अमृत = पंचामृत
पंच + अग्नि = पंचाग्नि
पद +अधिकारी = पदाधिकारी
पद+ अवली = पदावली
पुलक + अवली = पुलकावली
पर + अर्थ = परार्थ
पर + अधीन =पराधीन
परम + अर्थ = परमार्थ
पाठ + अंतर = पाठांतर
पीत + अंबर =पीतांबर
पुंडरीक + अक्ष = पुंडरीकाक्ष
पूर्व + अनुराग = पूर्वानुराग
पूर्व + अंचल = पूर्वांचल
पूर्व + अनुमान = पूर्वानुमान
पूर्व + अभ्यास = पूर्वाभ्यास
प्रश्न + अनुसार = प्रश्नानुसार
फल + अफल = फलाफल
बद्ध +अनुराग = बद्धानुराग
बहुल + अंश = बहुलांश
भाव + अंतर = भावांतर
मत + अनुसार = मतानुसार
मंद + अग्नि = मंदाग्नि
मद + अंध = मदां
मध्य + अंतर = मध्यांतर
मध्य + अवधि = मध्यावधि
मध्य + अवकाश = मध्यावकाश
मलय + अनिल = मलयानिल
मुख + अग्नि = मुखाग्नि
मृग + अंक = मृगांक
युग + अनुसार = युगानुसार
रस + अनुभूति = रसानुभूति
राम + अयन = रामायण
राम + अवतार = रामावतार
राज्य + अभिषेक = राज्याभिषेक
राष्ट्र + अध्यक्ष = राष्ट्राध्यक्ष
रूद्र + अक्ष = रूद्राक्ष
रूद्र + अवतार = रूद्रावतार
रोम + अवली = रोमावली
लाभ + अन्वित = लाभान्वित
लिंग + अनुशासन = लिंगानुशासन
लिंग + अनुपात = लिंगानुपात
लोहित + अश्व = लोहिताश्व
लोक + अधिपति = लोकाधिपति
वंश + अंकुर = वंशाकुर 
वंश + अनुक्रम = वंशानुक्रम
विचार + अधीन = विचाराधीन
विकल + अंग = विकलांग
विद्या + अध्ययन = विद्याध्ययन
वीर + अंगना = वीरांगना
वेद + अंत = वेदांत
वेद + अध्ययन = वेदाध्ययन
वर्णन + अतीत = वर्णनातीत
शक + अरि = शकारि
शत + अब्दी = शताब्दी
शब्द + अलंकार = शब्दालंकार
शरीर + अंत = शरीरांत
शस्त्र + अस्त्र = शस्त्रास्त्र
शरण +अर्थी = शरणार्थी
शश + अंक = शशांक
शस्त्र + अनुसार = शस्त्रानुसार
शास्त्र + अर्थ = शास्त्रार्थ
शिव + अम्बु = शिवाम्बु
श्वेत + अंबर = श्वेतांबर
श्लेष + अलंकार = श्लेषालंकार
सत्य + अर्थ = सत्यार्थ
सत्य + असत्य = सत्यासत्य
सत्य + अन्वेषी = सत्यान्वेषी
सभा + अध्यक्ष = सभाध्यक्ष
समय + अभाव = समयाभाव
समान + अधिकार = समानाधिकार
समान + अंतर = समानांतर
सर्व + अधिक = सर्वाधिक
सार + अंश = सारांश
स्वर्ण + अक्षर = स्वर्णाक्षर
सह + अनुभूति = सहानुभूति
स + अवधान = सावधान
सुर + असुर = सुरासुर
स्व + अर्थ = स्वार्थ
स्व + अर्थी = स्वार्थी
स्व + अधीन = स्वाधीन
स्व + अधीनता = स्वाधीनता
स्व + अवलंबी = स्वावलंबी
स्व + अभिमान = स्वाभिमान
स्व + अध्याय = स्वाध्याय
हरिण + अक्षी = हरिणाक्षी
हीन + अवस्था = हीनावस्था
त्रिपुर + अरि = त्रिपुरारि

निम्नलिखित उदाहरण में ह्स्व स्वर 'अ' तथा दीर्घ स्वर 'आ' के मेल से दीर्घ स्वर 'आ' की उत्पत्ति होती है। उसके उपरांत प्रथम शब्द का अंतिम व्यंजन 'आ' की मात्रा से सजकर नया शब्द बनता है।

(अ + आ = आ)

असुर + आलय = असुरालय    
अन + आदर = अनादर
अन + आवृष्टि = अनावृष्टि
अनाथ + आलय = अनाथालय
अमर + आसन = अमरासन
अंड + आकार = अंडाकार
अश्व + आरोही = अश्वारोही
अल्प + आयु = अल्पायु
एक + आनन = एकानन
कृष्ण + आनंद = कृष्णानंद
कुश + आसन = कुशासन
गज + आनन = गजानन
गुरुत्व + आकर्षण = गुरुत्वाकर्षण
गेय + आत्मकता = गेयात्मकता
गोल + आकार = गोलाकार
धन + आनंद = धनानंद
चतुर + आनंद = चतुरानंद
चतुर + आनन = चतुरानन
चंद्र + आकार = चंद्राकार
चरण + आयुद्ध = चरणायुद्ध
चिर + आयु = चिरायु
छात्र + आवास = छात्रावास
जल + आशय = जलाशय
जन + आश्रम = जनाश्रम
जन + आश्रय = जनाश्रय
ज्ञान + आत्मा = ज्ञानात्मा
तिमिर + आच्छादित = तिमिराच्छादित
तमस + आच्छन्न = तमसाच्छन्न
तमस + आवृत = तमसावृत
तुषार + आवृत्त = तुषारावृत्त
देव + आगमन = देवागमन
दूत + आवास = दूतावास
द्रोण + आचार्य = द्रोणाचार्य
दश + आनन = दशानन
दूर + आगत = दूरागत
देव + आलय = देवालय
देव + अंगना = देवांगना
दोष + आरोपण = दोषारोपण
दर्शन + आचार्य = दर्शनाचार्य
दुग्ध + आहार = दुग्धाहार
धर्म + आत्मा = धर्मात्मा
धन + आदेश = धनादेश
धन + आनंद = धनानंद
धर्म + आचार्य = धर्माचार्य
धूम + आच्छन्न = धूमाच्छन्न
नीच + आशय = नीचाशय
न्याय + आलय = न्यायालय
न्याय + अधीश = न्यायाधीश
नृत्य + आलय = नृत्यालय
निम्न + अनुसार =निम्नानुसार
पंच + आनंद = पंचानंद
पंच + आनन = पंचानन
पत्र + आचार = पत्राचार
पद + आक्रांत = पदाक्रांत
पद + आरूढ = पदारूढ
परम + आत्मा = परमात्मा
परम + आवश्यक = परमावश्यक
पुण्य + आत्मा = पुण्यात्मा
पुस्तक + आलय = पुस्तकालय
पूर्व + आग्रह = पूर्वाग्रह
प्र + आगण = प्रांगण
प्राण + आधार = प्राणाधार
प्र + आचार्य = प्राचार्य
प्र + अध्यापक = प्राध्यापक
प्रधान + आचार्य = प्रधानाचार्य
फल + आहार = फलाहार
फल + आदेश = फलादेश
फल + आकांक्षा = फलाकांक्षा
फल + आगम = फलागम
बद्ध + अंजली = बद्धांजली
ब्रह्मचर्य + आश्रम = ब्रह्मचर्याश्रम
भोजन +आलय = भोजनालय
भद्र + आसन = भद्रासन
भव + आतुर = भवातुर
भाव + आवेश = भावावेश
मंगल + आकार = मंगलाकार
मत्स्य + आकार = मत्स्याकार
मरण + आसन्न = मरणासन्न
महत्व + आकांक्षा = महत्वकांक्षा
महत्व + आकांक्षी = महत्वाकांक्षी
मुख + आकृति = मुखाकृति
मेघ + आच्छन्न = मेघाच्छन्न
रक्त + आभ = रक्ताभ
रस + आस्वादन = रसास्वादन
रत्न + आकर = रत्नाकर
रस + आत्मक = रसात्मक
रस + आभास = रसाभास
राज्य + आगार = राज्यागार
राम + आधार = रामाधार
राम + आनंद = रामानंद
लाट + अनुप्रास = लाटानुप्रास
लोक + आयतन = लोकायतन
लोप + आमुद्रा = लोपामुद्रा
वज्र + आघात = वज्राघात
वज्र + आयुद्ध = वज्रायुद्ध
वसंत + आगमन = वसंतागमन
वस्त्र + आलय = वस्त्रालय
वर्ण + आश्रम = वर्णाश्रम
वर्ग + आकार = वर्गाकार
विंध्य + आचल = विंध्याचल
व्यायाम + आदि = व्यायामादि
शरण + आगत = शरणागत
शिष्ट + आचार = शिष्टाचार
शिव + आलय = शिवालय
शुभ + आरंभ = शुभारंभ
शुभ + अंशु = शुभ्रांशु
श्लोक + आबद्ध = श्लोकाबद्ध
सत्य + आग्रह = सत्याग्रह
सत्य + आग्रही = सत्याग्रही
संशय + आत्मक = संशयात्मक
संदेह + आत्मक = संदेहात्मक
संकट + आपन्न = संकटापन्न
संगीत + आत्मक = संगीतात्मक
संग्रह + आलय = संग्रहालय
स + आश्चर्य = साश्चर्य
साहित्य + आचार्य = साहित्याचार्य
सिंह + आसन = सिंंहासन
हत + आश = हताश
हत + आहत = हताहत
हिम + आचल = हिमाचल
हिम + आच्छादित = हिमाच्छादित
हास्य + आस्पद = हास्यास्पद
त्रिभुज + आकार = त्रिभुजाकार
क्षुद्र + आत्मा = क्षुद्रात्मा

निम्न उदाहरण में दीर्घ स्वर 'आ' तथा ह्स्व स्वर 'अ' के योग से दीर्घ स्वर 'आ' के रूप में परिवर्तन होता है । जिससे पहले शब्द के अंतिम व्यंजन में 'आ' की मात्रा लगता है।

(आ + अ = आ)

आत्मा + अवलंबन = आत्मावलंबन
आशा + अतीत = आशातीत
जिह्वा + अग्र = जिह्वाग्र
झंझा + अनिल = झंझानिल
दीक्षा + अंत = दीक्षांत
द्वारका + अधीश = द्वारकाधीश
तथा + अस्त = तथास्तु
परीक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी
भाषा + अंतर = भाषांतर
महा + अमात्य = महामात्य
यथा + अर्थ = यथार्थ
लेखा + अधिकारी = लेखाधिकारी
शिक्षा + अर्थी = शिक्षार्थी
श्रद्धा + अंजलि = श्रद्धांजलि

नीचे दिए गए उदाहरण में दोनों दीर्घ स्वर 'आ' मिलकर दीर्घ रूप 'आ' का आकार लेते हैं। पूर्व की तरह इसमें भी प्रथम शब्द के व्यंजन को 'आ' की मात्रा से सुशोभित किया जाता है।

कृपा + आचार्य = कृपाचार्य
कृपा + आकांक्षी = कृपाकांक्षी
तथा + आगत = तथागत
दया + आनंद = दयानंद
निरा + आनंद = निरानंद
प्रेमा + आलाप = प्रेमालाप
मदिरा + आलय = मदिरालय
महा + आशय = महाशय
महा + आत्मा = महात्मा
राजा + आज्ञा = राजाज्ञा
लीला + आगार = लीलागार
वार्ता + आलाप = वार्तालाप
विद्या + आलय = विद्यालय
शिला + आसन = शिवासन
शिक्षा + आलय = शिक्षालय
क्षुधा + आतुर = क्षुधातुर
क्षुधा + आर्त्त = क्षुधार्त्त

निम्नलिखित उदाहरण में ह्स्व 'इ' हो या दीर्घ 'ई', दोनों में से कोई भी इ / ई से जुड़ते हैं तो परिणाम पूर्ववत ही होता है अर्थात वे दीर्घ 'ई' में परिवर्तित हो जाते हैं, फिर प्रथम शब्द के आखिरी व्यंजन 'ई' की मात्रा में रूपांतरित हो जाते हैं।

जैसे -

         इ + इ = ई
         इ + ई = ई
         ई + इ = ई
         ई + ई = ई

( इ + इ = ई )

अभि + इष्ट = अभीष्ट
अति + इव = अतीव
अति + इंद्र = अतींद्र
कवि + इंद्र = कवींद्र
गिरि + इंद्र = गिरींद्र
मुनि + इंद्र = मुनींद्र
रवि + इंद्र = रवींद्र

( इ + ई = ई )

अधि + ईश्वर = अधीश्वर
अधि + ईश = अधीश
कपि + ईश्वर = कपीश्वर
कपि + ईश = कपीश
कवि + ईश = कवीश
गिरि + ईश = गिरीश
परि + ईक्षा = परीक्षा
मुनि + ईश = मुनीश
रवि + ईश = रवीश
हरि +ईश = हरीश

( ई + इ = ई )

फनी + इंद्र = फनींद्र
रजनी + इंदु = रजनींदु
नारी + इंदु = नारींदु
मही + इंद्र = महींद्र

( ई + ई = ई )

जानकी + ईश = जानकीश
नदी + ईश = नदीश
नारी + ईश्वर = नारीश्वर
पृथ्वी + ईश = पृथ्वीश
मही + ईश्वर = महीश्वर
रजनी + ईश = रजनीश

निम्नांकित उदाहरण में ह्स्व 'उ' या दीर्घ 'ऊ' से उ / ऊ का संयोग होने पर वह दीर्घ 'ऊ' में परिणत हो जाता है।इसके साथ ही प्रथम शब्द के अंतिम व्यंजन में दीर्घ 'ऊ' की मात्रा से विभूषित हो जाता है।

( उ + उ = ऊ )
( उ + ऊ = ऊ )
( ऊ + उ = ऊ )
( ऊ + ऊ = ऊ )

अनु + उपमेय = अनुपमेय
गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
भानु + उदय = भानूदय
लघु + उत्तरीय = लघूत्तरीय
विधु + उदय = विधूदय
सु + उक्ति = सूक्ति

लघु + ऊर्मि = लघूर्मि
सिंधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि
भानु + ऊर्जा = भानूर्जा

चमू + उत्साह = चमूत्साह
वधू + उत्सव = वधूत्सव
वधू + उल्लेख = वधूल्लेख

भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व

नीचे दिए गए उदाहरण में ' ऋ ' का ' ऋ ' से मेल होने की स्थिति में विकार ' ऋ ' में होने के साथ ही ' ऋ ' की ही मात्रा का उपयोग होता है।
यद्यपि इसका प्रयोग सिर्फ संस्कृत में ही होता है।

पितृ + ऋण = पितृण
मातृ + ऋणाम = मातृणाम
































 

Sunday, November 17, 2019

समास में अंतर

                   समास में अंतर

कुछ समास समान प्रतीत होने के उपरांत भी उनमें कुछ सूक्ष्म अंतर प्रकट होते हैं।

कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर :

द्विगु और बहुव्रीहि समास में अंतर :

कर्मधारय समास में दोनों पद प्रधान होते हैं। यह किसी अन्य अर्थ की ओर संकेत नहीं करते हैं। इसका एक पद विशेषण या उपमान तथा दूसरा पद विशेष्य या उपमेय होता है।
परन्तु बहुव्रीहि समास में दोनों पद गौण होकर किसी पृथक अर्थ की ओर संकेत करते हैं।

पहला उदाहरण :

कमलनयन - कमल जैसे नयन (आँख) - कर्मधारय समास

दूसरा उदाहरण :

कमलनयन - कमल समान नयन हैं जिनके (कृष्ण) - बहुव्रीहि समास

उपरोक्त पहले उदाहरण 'कमलनयन' शब्द में पूर्व पद 'कमल' विशेषण या उपमान है जो उत्तर पद में स्थित विशेष्य या उपमेय के रूप में 'नयन' की विशेषता प्रदर्शित करते हैं।
इसमें विशेषण या विशेष्य तथा उपमान या उपमेय के मेल का ज्ञात होता है जो कर्मधारय समास होने का संकेत करते हैं। 
किंतु बहुव्रीहि समास में दोनों पद संगठित होकर किसी अन्य अर्थ को प्रकट करते हैं।
उपरोक्त दूसरे उदाहरण में 'कमल' और 'नयन' दोनों पद मिलकर किसी तीसरे शब्द 'कृष्ण' का निर्माण करते हैं।
अतः यह सामासिक पद 'कमलनयन' बहुव्रीहि समास के अंतर्गत आते हैं।

जैसे : 

पीतांबर - पीला है जो वस्त्र (कर्मधारय समास)
पीतांबर - पीला है वस्त्र जिनका - कृष्ण (बहुव्रीहि समास)

द्विगु और बहुव्रीहि समास में अंतर :

द्विगु समास का पूर्व पद संख्यावाची होता है जो उत्तर पद की संख्या बताता है एवं दोनों पद मिलकर अर्थात समस्त पद समूहवाचक बन जाता है। इसका पूर्व पद, संख्यावाची विशेषण होता है।
बहुव्रीहि समास मे प्रथम पद संख्यावाचक होने के बावजूद निष्क्रिय होकर द्वितीय पद के साथ मिलकर किसी तीसरे पद का सृजन करता है।

पहला उदाहरण :

त्रिलोचन - तीन लोचनों (आँखों) का समूह (द्विगु समास)

दूसरा उदाहरण :

त्रिलोचन - तीन लोचन हैं जिनके - शिव (बहुव्रीहि समास)

उपरोक्त पहला उदाहरण 'त्रिलोचन' में पूर्व पद 'त्रि' संख्यावाची विशेषण है जिसका अर्थ 'तीन' तथा उत्तर पद 'लोचन' का अर्थ 'आँँख' होता है। जिसका अर्थ तीन लोचनों का समूह होता है। दोनों पद मिलकर समूह का बोध कराते हैं इसलिए यह द्विगु समास के अंतर्गत आते हैं।
दूसरे उदाहरण में दोनों पद मिलकर एक नवीन शब्द बनाते हैं क्योंकि सिर्फ 'शिव' के ही तीन आँँखें होते हैं। इस सामासिक पद से 'शिव' नामक अर्थ प्रस्तुत होता है। अतः इसे बहुव्रीहि समास कहा जाता है।

जैसे :

चतुर्भुज - चार भुजाओं का समूह (द्विगु समास)
चतुर्भुज - चार भुजाएँ हैं जिनकी - शिव (बहुव्रीहि समास

समास से संबंधित कुछ प्रश्नोत्तर : 

1. प्रश्न : शब्द समूह को संक्षिप्त करने की प्रक्रिया को                 क्या कहा जाता है ?
    उत्तर : समास।
2. प्रश्न : दोनों पद मिलकर एक नवीन शब्द बनाते हैं,                 उसे क्या कहते हैं ?
   उत्तर : सामासिक पद।
3. प्रश्न : समस्त पद को खंडित करने को क्या कहते हैं              ?
    उत्तर : समास विग्रह।
4. प्रश्न : विग्रह करने पर दोनों पदों के मध्य क्या                       लगता है ?
    उत्तर : कारक का विभक्ति चिह्न या परसर्ग।
5. प्रश्न : समस्त पद का दूसरा नाम क्या है ?
    उत्तर : सामासिक पद।
6. प्रश्न : समस्त पद के पहले पद को क्या कहा जाता                 है ?
    उत्तर : पूर्व पद।
7. प्रश्न : समस्त पद का दूसरा पद क्या कहलाता है ?
    उत्तर : उत्तर पद।
8. प्रश्न : समास के कितने भेद होते हैं ?
   उत्तर : छ: भेद।
9. प्रश्न : अव्ययीभाव समास का कौन सा पद प्रधान                  होता है ?
    उत्तर : पूर्व या पहला पद।
10. प्रश्न : किस समास का पहला पद अव्यय होता है                   ?
      उत्तर : अव्ययीभाव समास।
11. प्रश्न : किस समास का समस्त पद अविकारी होता                है ?
      उत्तर : अव्ययीभाव समास।
12. प्रश्न : किस समास का उत्तर पद प्रधान होता है ?
      उत्तर : तत्पुरूष समास।
13. प्रश्न : किस समास का एक पद विशेषण और                        दूसरा पद विशेष्य होता है ?
     उत्तर : कर्मधारय समास।
14. प्रश्न : उपमान और उपमेय के संयुक्त पद वाले                      समास को क्या कहा जाता है ?
      उत्तर : कर्मधारय समास।
15. प्रश्न : विशेषण शब्द किसकी विशेषता बताता है ?
      उत्तर : विशेष्य।
16. प्रश्न : उपमान किसे कहते हैं ?
     उत्तर : जिससे उपमा दी जाए या तुलना की जाए                    उसे उपमन कहते हैं।
17. प्रश्न : उपमेय क्या है ?
      उत्तर : जिसकी समानता या तुलना की जाती है,                      वह उपमेय कहलाता है।
18. प्रश्न : किस समास का पूर्व पद संख्यावाची होता है                 ?
      उत्तर : द्विगु समास।
19. प्रश्न : कौन सा समास समूह का बोध कराता है ?
      उत्तर : द्विगु समास।
20. प्रश्न : किस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं ?
      उत्तर : द्वंद्व समास।
21. प्रश्न : किस समास को विग्रह करने पर योजक                      शब्द का प्रयोग किया जाता है ?
     उत्तर : द्वंद्व समास।
22. प्रश्न : द्वंद्व समास का विग्रह करने पर कौन सा                      योजक शब्द प्रयुक्त किया जाता है ?
      उत्तर : और / या ।
23. प्रश्न : किस समास के दोनों पद निष्क्रिय होकर                      किसी अन्य पद को प्रधानता देते हैं ?
      उत्तर : बहुव्रीहि समास ।
24. प्रश्न : किस समास का तीसरा पद प्रधान होता है                   ?
      उत्तर : बहुव्रीहि समास।
25. प्रश्न : संधि और समास में क्या अंतर है ?
      उत्तर : संधि वर्णों का तथा समास शब्दों का मेल                      होता है।










Wednesday, November 13, 2019

बहुव्रीहि समास

                      बहुव्रीहि समास

बहुव्रीहि का अर्थ :

बहुव्रीहि समास की परिभाषा :

बहुव्रीहि समास का उदाहरण :

अर्थ:

बहु + व्रीहि = बहुव्रीहि
उपरोक्त शब्द में प्रथम पद 'बहु', द्वितीय पद 'व्रीहि' का विशेषण है। दोनों पद संयुक्त रूप से विशेषण बन जाते हैं।

परिभाषा :

जिस समास में दोनों पद संगठित होकर किसी तीसरे पद का निर्माण करते हैं एवं दोनों पद गौण होकर अन्य अर्थ प्रकट करते हैं, वे बहुव्रीहि समास के अंतर्गत आते हैं। 
सामान्य अर्थ में दोनों पद प्रभावहीन होकर किसी भिन्न संज्ञा का बोध कराते हैं।

साधारण शब्द में जिस समास के दोनों पद अप्रधान एवं उनके अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ निकलकर सामने प्रस्तुत हो, वह बहुव्रीहि समास कहलाता है।

निम्नांकित उदाहरण में सामासिक शब्द 'गजवदन' में प्रथम पद 'गज' का अर्थ हाथी तथा उत्तर पद 'वदन' का अर्थ मुख होता है। विग्रह के उपरांत इसका अर्थ 'हाथी के समान मुख है जिनका' होता है।
परन्तु इसका सांकेतिक अर्थ 'गणेश' होगा क्योंकि यह शब्द गणेश जी के लिए ही प्रयुक्त होता है।

गजवदन = गज के समान मुख हो जिनका = गणेश

एक अन्य उदाहरण :

चक्रधर = चक्र है जो धारणकर्ता = विष्णु
उपरोक्त सामासिक पद 'चक्रधर' चक्र धारण करनेवाले को कहा जाता है, लेकिन इस नाम से विष्णु को संबोधित किया जाता है।

एक और उदाहरण :

शूलपाणि = त्रिशूल है जिसके पाणि (हाथ) में = शिव

उपरोक्त समस्त पद 'शूलपाणि' का सामान्य अर्थ जिनके हाथ त्रिशूल हो उसे 'शूलपाणि' कहा जाता है। इस शब्द से एक अन्य अर्थ 'शिव' प्रकट होता है। वस्तुतः शिव ही त्रिशूल धारक हैं। 

समस्त पद                विग्रह


भूतनाथ                    भूतों का नाथ (शिव)
त्रिलोचन                   तीन लोचन हैं जिनके (शिव)
चंद्रमौली                   चंद्र है जिसके मस्तक पर (शिव)
महादेव                     महान हैं जो देव (शिव)
चंद्रचूड़                     चंद्रमा है जिनके चोटी पर (शिव)
आशुतोष                  जो शीघ्र संतुष्ट हो जाए (शिव)
चंद्रशेखर                  चंद्र है जिनके शिखर पर (शिव)
नीलकंठ                    नीला है कंठ जिनका (शिव)
त्रिनेत्र                       तीन नेत्र हैं जिनके (शिव)
पंचानन                     पाँच सिर हैं जिनके (शिव)
मृत्युंजय                    मृत्यु को जितने वाला (शिव)
इंदुशेखर                   इंदु हैं जिनके शीश पर (शिव)
चंद्रभाल                    चंद्र है जिसके ललाट पर (शिव)

आजानुबाहु               घुटनों तक बाँह हैं जिनके(विष्णु)
पुण्डरीकाक्ष              कमल जैसे आँखों वाले (विष्णु)
चतुर्भुज                    चार हैं भुजाएँ जिनके ((विष्णु)
पीतांबर                    पीले हैं वस्त्र जिनके (विष्णु)
गरूड़ध्वज                गरूड़ है ध्वज जिनका (विष्णु)
चक्रपाणि                   चक्र है हाथ में जिनके (विष्णु)

वक्रतुंड                     वक्र सूँड़ है जिनके (गणेश)
गजानन                    गज समान सिर वाले (गणेश)
एकदंत                      एक दाँत है जिनका (गणेश)
लंबोदर                     लंबा है उदर जिनका (गणेश)

राधारमण                  राधा सह रमनेवाले (कृष्ण)
मुरलीधर                   मुरली धारक हैं जो (कृष्ण)
घनश्याम                   घन के समान काला (कृष्ण)
गोपाल                      गायों का पालन कर्ता (कृष्ण)

मन्मथ                       मन को मथनेवाला (कामदेव)
अनंग                        बिना अंग का है जो (कामदेव)
मनोज                       मन से जन्म लेनेवाला (कामदेव)
मकरध्वज                 मकर है ध्वज जिनका (कामदेव)

कपीश                      कपियोंं के ईश्वर हैं जो (हनुमान)
वज्रांग                       वज्र समान अंगवाले (हनुमान)
महावीर                     महान वीर हैं जो (हनुमान)

चतुरानन                   चार सिर हैं जिनके (ब्रह्मा)
नाभिज                      नाभि में जन्मा जो (ब्रह्मा)
चतुर्मुख                     चार मुख है जिनका (ब्रह्मा)

वाग्देवी                     भाषा की देवी है जो (सरस्वती)
श्वेताम्बरी                  श्वेत हैं वस्त्र जिनके (सरस्वती)
वीणापाणि                  वीणा है हाथ जिनके (सरस्वती)

दशानन                     दस हैं सिर जिसके (रावण)
लंकेश                       लंका का एश (रावण)

अंशुमाली                   अंशु है माला जिनकी (सूर्य)
दिनकर                      दिन का उत्पन्न कर्ता (सूर्य)

वज्रपाणि                     वज्र है हाथ जिनके (इंद्र)
वज्रायुध                      वज्र  है आयुध जिनका (इंद्र)

जानकीवल्लभ             जानकी के वल्लभ हैं जो (राम)
रत्नगर्भा                     रत्नों के गर्भ वाली (पृथ्वी)
पद्मासन                      कमल पर आसीन (लक्ष्मी)
शैलपुत्री                     शैल की पुत्री है जो (पार्वती)
मयूरवाहन                  मयूर है वाहन (कार्तिकेय)
हलधर                       हल का धारण कर्ता (बलराम)
खगेश                        खगों का ईश्वर है जो (गरुण)
निशाचर                     रात्रि विचरण कर्ता (राक्षस)
वज्रदंती                      वज्र जैसे दाँत हैंं जिसके(हाथी)
विषधर                       विष का धारक (साँप)
बसंतदूत                     बसंत ऋतु का दूत (कोयल)
बारहसिंगा                   बारह सींग हैं जिसके (हिरण)
षटपद                         छः पैर हैं जिसके (भौंरा)
पंकज                          कीचड़ में जन्मा ( कमल)
जलद                          जल प्रदानकर्ता (मेघ)
जलज                         जल जनित (कमल)

















  

Visarg sandhi

                       विसर्ग संधि विसर्ग संधि की परिभाषा : विसर्ग संधि के नियम :  विसर्ग संधि का उदाहरण : परिभाषा : विसर्ग (:) ...