Thursday, November 28, 2019

Gun our vriddhi sandhi

               गुण और वृद्धि स्वर संधि

गुण स्वर संधि की परिभाषा :

गुण स्वर संधि का उदाहरण :

वृद्धि स्वर संधि की परिभाषा :

वृद्धि स्वर संधि का उदाहरण :

गुण स्वर संधि की परिभाषा : 

गुण स्वर संधि में 'अ' या 'आ' से  इ / ई , उ / ऊ  तथा 'ऋ' का मेल होने का परिणाम अर्थात उसके स्थान पर क्रमशः ए , ओ तथा अर का प्रयोग होता है।

जैसे :

देव + इंद्र = देवेंद्र           (अ + इ = ए)

उपरोक्त दो शब्द 'देव' तथा 'इंद्र' के संधि हेतु पहला शब्द 'देव' का अंतिम स्वर 'अ' तथा दूसरा शब्द 'इंद्र' का प्रथम स्वर वर्ण 'इ' के योग करने पर 'ए' में बदल जाता है और पहले शब्द का अंतिम व्यंजन में 'ए' की मात्रा लगकर 'वे' हो जाता है जिससे देव और इंद्र के जुड़ने पर 'देवेंद्र' हो जाता है। इसी अनुसार निम्न शब्दों का भी निर्माण होता है।

गण +ईश = गणेश         (अ + ई = ए)
महा + इंद्र = महेंद्र          (आ + इ = ए)
महा + ईश = महेश।      (आ + ई = ए)
चंद्र + उदय = चंद्रोदय    (अ + उ = ओ)
जल + ऊर्मि = जलोर्मि    (अ + ऊ = ओ)
महा+ उदय = महोदय     (आ + उ = ओ)
गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि     (आ + ऊ = ओ)
देव + ऋषि = देवर्षि        (अ + ऋ = अर)
महा + ऋषि = महर्षि       (आ + ऋ = अर)

निम्नलिखित संधि में दो शब्दों में से पहले शब्द के अंत में 'अ' या 'आ' हो तथा दूसरे शब्द का प्रथम शब्द 'इ' या 'ई' हो तब दोनों के योग करने पर वह 'ए' में परिवर्तित हो जाता है। साथ ही प्रथम शब्द का अंतिम व्यंजन 'ए' की मात्रा से सुशोभित हो जाता है।

गुण स्वर संधि का उदाहरण :

अ + इ = ए
अ + ई = ए
आ + इ = ए
आ + ई = ए

(अ + इ = ए)

ईश्वर + इच्छा = ईश्वरेच्छा
खग + इंद्र = खगेंद्र
गज + इंद्र = गजेंद्र
जित + इंद्र =जितेंद्र
दर्शन + इच्छा = दर्शनेच्छा
नर + इंद्र = नरेंद्र
नाग + इंद्र = नागेंद्र
फल + इच्छा = फलेच्छा
बाल + इंद्र = बालेंद्र
भुजंग + इंद्र = भुजगेंद्र
मृग + इंद्र = मृगेंद्र
योग + इंद्र = योगेंद्र
राघव+ इंद्र = राघवेंद्र
विजय + इच्छा = विजयेच्छा
वीर + इंद्र = वीरेंद्र
शिव + इंद्र = शिवेंद्र
शुभ + इच्छा = शुभेच्छा
सुर + इंद्र = सुरेंद्र
ज्ञान + इंद्र = ज्ञानेंद्र

(अ + ई = ए)

उप + ईक्षा = उपेक्षा
एक + ईश्वर = एकेश्वर
कमल+ ईश = कमलेश
खग + ईश = खगेश
खग + ईश्वर = खगेश्वर
तारक + ईश = तारकेश
तारक + ईश्वर = तारकेश्वर
तप + ईश्वर = तपेश्वर
देव + ईश = देवेश
धन + ईश = धनेश
नाग + ईश = नागेश
नर + ईश = नरेश
नक्षत्र + ईश = नक्षत्रेश
परम + ईश्वर = परमेश्वर
पर्वत + ईश्वर = पर्वतेश्वर
प्राण + ईश्वर =प्राणेश्वर
ब्रज + ईश = ब्रजेश
भुवन + ईश्वर = भुवनेश्वर
भूत + ईश = भूतेश
भूत + ईश्वर = भूतेश्वर
राम + ईश्वर = रामेश्वर
रावण + ईश्वर = रावणेश्वर
लोक + ईश = लोकेश
लोक + ईश्वर = लोकेश्वर
वाम + ईश्वर = वामेश्वर
सर्व + ईश = सर्वेश
सर्व +ईश्वर = सर्वेश्वर
सुर + ईश = सुरेश
ज्ञान + ईश = ज्ञानेश
ज्ञान + ईश्वर = ज्ञानेश्वर

(आ + इ = ए)

यथा + इष्ट = यथेष्ट
रमा + इंद्र = रमेंद्र
राजा + इंद्र = राजेंद्र

(आ + ई = ए)

ऊर्मिला + ईश = ऊर्मिलेश
उमा + ईश = उमेश
गंगा + ईश = गंगेश
रमा + ईश = रमेश
राका + ईश = राकेश
लंका + ईश = लंकेश
लंका + ईश्वर = लंकेश्वर

नीचे दिए गए संधि में 'अ' या 'आ' को 'उ' या 'ऊ' से योग करने पर वह 'ओ' में बदल जाता है तथा पहले शब्द के आखिरी व्यंजन में 'ओ' की मात्रा लग जाता है।

(अ + उ = ओ)
(अ + ऊ = ओ)
(आ + उ = ओ)
(आ + ऊ = ओ)

(अ + उ = ओ)

आत्म + उत्सर्ग = आत्मोत्सर्ग
अर्थ + उपार्जन = अर्थोपार्जन
आनंद + उत्सव = आनंदोत्सव
कर्ण + उद्धार = कर्णोद्धार
ग्राम + उद्धार = ग्रामोद्धार
ग्राम + उद्योग = ग्रामोद्योग
जन्म + उत्सव = जन्मोत्सव
डिम्ब + उद्घोष = डिम्बोद्घोष
दीप + उत्सव = दीपोत्सव
देव + उत्थान = देवोत्थान
धर्म + उपदेश = धर्मोपदेश
धीर + उदात्त + धीरोदात्त
धीर + उद्धत = धीरोद्धत
नव + उदय = नवोदय
नील + उत्पल = नीलोत्पल
पद + उन्नति = पदोन्नति
पर + उपकार = परोपकार
पश्चिम + उतर = पश्चिमोत्तर
पुरूष + उत्तम = पुरूषोत्तम
पूर्व + उदय = पूर्वोदय 
पूर्व + उत्तर = पूर्वोत्तर
प्र + उत्साहन = प्रोत्साहन
पुष्प + उद्यान = पुष्पोद्यान
फल +उदय = फलोदय
फेन + उज्ज्वल = फेनोज्ज्वल
भाग्य + उदय = भाग्योदय
मद + उन्मत्त = मदोन्मत्त
मरण + उपरांत = मरणोपरांत
लोक + उक्ति = लोकोक्ति
लुप्त + उपमा = लुप्तोमा
लोक + उत्तर = लोकोत्तर
वन + उत्सव = वनोत्सव
वसंत + उत्सव = वसंतोत्सव
विकास +उत्सव = विकासोत्सव
विकास + उन्मुख = विकासोन्मुख
विचार + उचित = विचारोचित
षोड्श + उपचार = षोड्शोपचार
सर्व + उच्च = सर्वोच्च
सर्व + उदय = सर्वोदय
सर्व + उत्तम = सर्वोत्तम
सुर + उद्यान = सुरोद्यान
सूर्य + उदय = सूर्योदय
हर्ष + उल्लास = हर्सोल्लास
हित + उपदेश = हितोपदेश

(अ+ ऊ = ओ)

नव + ऊढा = नवोढा
समुद्र + ऊर्मि = समुद्रोर्मि

(आ + उ = ओ)

गंगा + उदक = गंगोदक
चिंता + उन्मुक्त = चिंतोन्मुक्त
झंडा + उत्तोलन = झंडोत्तोलन
ध्वजा + उत्तोलन = ध्वजोत्तोलन
महा + उत्सव = महोत्सव
महा + उपदेश = महोपदेश
यथा + उचित = यथोचित
लंबा + उदर = लंबोदर
विद्या + उपार्जन = विद्योपार्जन

(आ + ऊ = ओ)

धारा + ऊष्ण = धारोष्ण

निम्नांकित संधि में 'अ' या 'आ' को 'ऋ' से जोड़ने पर  'अर' में रूपांतरित होकर प्रथम शब्द के अंतिम व्यंजन 'अर' से युक्त हो जाता है। 

(अ + ऋ = अर)

ब्रह्म + ऋषि = ब्रह्मर्षि
सप्त + ऋषि = सप्तर्षि
सुख + ऋत = सुखार्त

(आ + ऋ = अर)

राजा + ऋषि = राजर्षि

वृद्धि स्वर संधि की परिभाषा :

वृद्धि स्वर संधि में अ/आ के साथ ए/ऐ का मेल होने पर 'ऐ' तथा ओ/औ का मेल होने पर 'औ' का रूप ग्रहण करने के साथ पहले शब्द का अंतिम व्यंजन क्रमशः ऐ, औ की मात्रा से युक्त हो जाता है।

विस्तारपूर्वक,

इसमें दो शब्दों की संधि हेतु पहले शब्द का अंतिम स्वर वर्ण 'अ' या 'आ' के साथ दूसरे शब्द का पहला स्वर वर्ण 'ए'या'ऐ' के योग का परिणाम 'ऐ'हो जाता है तथा इसी तरह  अ/आ से 'ओ' या 'औ' का योग करने का परिणाम 'औ' हो जाता है। उसके उपरांत पहले शब्द का अंतिम व्यंजन परिवर्तित स्वर वर्ण की मात्रानुसार ऐ/औ से अलंकृत हो जाता है।

जैसे :

एक + एक = एकैक  (अ + ए = ऐ)

उपरोक्त दो शब्दों में से प्रथम शब्द 'एक' का अंतिम स्वर 'अ' है। दूसरे शब्द 'एक' का प्रथम स्वर वर्ण 'ए' है। दोनों को जोड़ने पर वह 'ऐ' का रूप धारण करता है। उसके पश्चात प्रथम शब्द का अंतिम व्यंजन 'क' में 'ऐ' की मात्रा लगकर एवं 'एक' और 'एक' संयुक्त होकर 'एकैक' हो जाता है।

अ + ए = ऐ
अ + ऐ = ऐ
आ + ए = ऐ
आ + ऐ = ऐ
अ + ओ = औ
आ + ओ = औ
अ + औ = औ
आ + औ = औ

वृद्धि स्वर संधि का उदाहरण :

( अ + ए = ऐ )

अद्य + एव = अद्यैयैव
परम + एषणा = परमैषणा
लोक + एषणा = लोकैषणा

( अ + ऐ = ऐ )

टिक + ऐत = टिकैत
भाव + ऐश्वर्य = भावैश्वर्य
मत + ऐक्य = मतैक्य
हित + ऐषी = हितैषी

( आ + ए = ऐ )

तथा + एव = तथैव
वसुधा + एव = वसुधैव
सदा + एव = सदैव

( आ + ऐ = ऐ )

गंगा + ऐश्वर्य = गंगैश्वर्य
महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
राजा + ऐश्वर्य = राजैश्वर्य

( अ + ओ = औ )

अधर + ओष्ठ = अधरौष्ठ
जल + ओध = जलौध
परम + ओज = परमौज
बिम्ब + ओष्ठ = बिम्बौष्ठ

( आ + ओ = औ )

गंगा + ओध = गंगौध
महा + ओज = महौज
महा + ओजस्वी = महौजस्वी

( अ + औ = औ )

गृह + औत्सक्य = गृहौत्सक्य
परम + औदार्य = परमौदार्य
परम + औषध = परमौषध
परम + औषधि = परमौषधि
वन + औषध = वनौषध
वन + औषधि = वनौषधि
सुर + औदार्य = सुरौदार्य

( आ + औ = औ )

महा + औषध = महौषध
महा + औषधि = महौषधि
महा + औत्सक्य = महौत्सक्य




























Sunday, November 24, 2019

Sandhi our Dirgha sandhi

                    संधि और दीर्घ संधि

  • संधि का अर्थ :
  • संधि की परिभाषा :
  • संधि विच्छेद :
  • संधि के प्रकार :
  • दीर्घ स्वर संधि :
संधि का अर्थ :
सम् + धि = संधि (मेल या मिलाप )
संधि का अर्थ वर्णों का जोड़, वर्णों का मेल या वर्णों के बीच समझौता करना होता है।

संधि की परिभाषा :                                          

दो वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार अर्थात परिवर्तन होता है, इस प्रक्रिया को संधि कहते हैं।

दूसरे तरह से,

जब दो शब्दांश या शब्द परस्पर योग करते हैं तो स्वर और व्यंजन में जो बदलाव आता है, वह संधि कहलाता है।

दो वर्ण एक दूसरे से मिलने हेतु नजदीक आते हैं तो इनकी निकटता को 'संहिता' कहते हैं।

उदाहरण : भाव + अर्थ = भावार्थ

उपरोक्त दो शब्द 'भाव' एवं 'अर्थ' का संधि करने हेतु सर्वप्रथम प्रत्येक शब्द का वर्ण विच्छेद करेंगे।

भाव का वर्ण विच्छेद = भ् + आ + व् + अ
अर्थ का वर्ण विच्छेद = अ + र्  + थ् + अ

इन दोनों शब्दांशो को जोड़ने हेतु 'भाव' के वर्ण विच्छेद का अंतिम वर्ण 'अ' तथा 'अर्थ' के वर्ण विच्छेद का प्रथम वर्ण 'अ' को लिया जाता है। दोनों का मेल करने पर 'आ' में बदल जाता है। इसके पश्चात प्रथम शब्द का अंतिम व्यंजन 'व' में आ की मात्रा लगकर 'वा' हो जाता है। 

ये दोनों ह्स्व वर्णोंं का मेल करने पर दीर्घ वर्ण 'आ' के रूप में परिवर्तित हो जाता है जिसका संधि 'भावार्थ' होगा।

साधारण शब्दों में, प्रथम शब्द का अंतिम तथा दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण को मिलाकर संधि किया जाता है।

उदाहरण : हिम + आलय = हिमालय

संधि विच्छेद :

संधि को तोड़ना, अलग करना या विखंडित करना संधि विच्छेद कहलाता है।

जैसे : शिवालय = शिव + आलय
         ग्रंथालय  =  ग्रंथ + आलय

संधि के प्रकार : 


संधि तीन प्रकार के होते हैं।

(क) स्वर संधि
(ख) व्यंजन संधि
(ग) विसर्ग संधि

(क) स्वर संधि की परिभाषा :

दो स्वर वर्णों के मेल से जो विकार उत्पन्न होता है उसे स्वर संधि कहते हैं।

जैसे :  देव + आलय = देवालय

'देव' शब्दांश के अंत में 'अ' तथा 'आलय' के प्रारंभ में 'आ' स्वर हैं। 'अ' तथा 'आ' के योग से 'अ' दीर्घ रूप 'आ' में बदल जाता है। इस तरह 'देव' का अंतिम वर्ण 'व', ' वा'में परिवर्तित होकर देवालय शब्द बन जाता है।

स्वर संधि के भेद :

स्वर संधि के पाँच भेद होते हैं।
(1) दीर्घ स्वर संधि
(2) गुण स्वर संधि
(3) वृद्धि स्वर संधि
(4) यण स्वर संधि
(5) अयादि स्वर संधि

(1) दीर्घ स्वर संधि :

जब ह्स्व या दीर्घ स्वर अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ के साथ ह्स्व या दीर्घ स्वर अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ का मेल होता है तब दीर्घ रूप आ, ई, ऊ, ऋ  में विकार उत्पन्न होता है अर्थात वह दीर्घ रूप में बदल जाता है। अतः इस तरह के परिवर्तन को दीर्घ स्वर संधि कहते हैं।

निम्नांकित उदाहरण में ह्स्व स्वर 'अ' तथा ह्स्व स्वर 'अ' संयुक्त होकर दीर्घ स्वर 'आ' का रूप धारण करते हैं। उसके पश्चात प्रथम शब्द का अंतिम व्यंजन  'आ' की मात्रा से सुसज्जित होकर एक नवीन शब्द का निर्माण करता है।

(अ + अ = आ ) 

अधिक + अंश = अधिकांश                                 अन्न  + अभाव = अन्नाभाव  
अन्य  + अन्य  = अन्यान्य     
अयन + अंश   = अयनांश
अस्त + अचल = अस्ताचल
उत्तर + अयन = उत्तरायण
उदय + अचल = उदयाचल
एक + अंकी = एकांकी    
करूण + अमृत = करूणामृत
क्रम    + अनुसार = क्रमानुसार
कूर्म + अवतार = कूर्मावतार
काम   + अन्य = कामान्य
काम + अरि = कामारि
काल + अंतर = कालांतर
काल + अग्नि = कालाग्नि
केशव + अरि = केशवारि
क्रोध + अग्नि = क्रोधाग्नि
कंस + अरि = कंसारि
कल्प + अंत = कल्पांत
कोमल + अंगी = कोमलांगी
केश + अंत = केशांत
कौरव + अरि = कौरवारि
कृष्ण + अवतार = कृष्णावतार
गीत + अंजली = गीतांजली
गोत्र + अध्याय = गोत्राध्याय
गौरव + अन्वित = गौरवान्वित
घन + अंधकार = घनांधकार
चरण + अरविंद = चरणाविंद
चरण + अमृत = चरणामृत
चरित्र + अंकन = चरित्रांकन
चित्र + अंकन = चित्रांकन
छात्र + अवकाश = छात्रावकाश
जन्म + अंतर = जन्मांंतर
जनक + अंगजा = जनकांगजा
जीर्ण + अंचल = जीर्णांचल
ज्ञान + अभाव =ज्ञानाभाव
ज्ञान + अंजन = ज्ञानांजन
तिमिर + अरि = तिमिरारि
तुरीय + अवस्था = तुरीयावस्था
त्रिगुण + अतीत = त्रिगुणातीत
दर्शन + अर्थ = दर्शनार्थ
दाव +अग्नि = दावाग्नि
दाव + अनल = दावानल
देश + अटन = देशाटन
देश + अंतर = देशांतर
दंडक + अरण्य = दंडकारण्य
दक्षिण + अयन = दक्षिणायन
दानव + अरि = दानवारि
दास + अनुदास = दासानुदास
दिन + अंक = दिनांक
दिन + अंत = दिनांत
दिव्य + अस्त्र = दिव्यास्त्र
दीप + अवली = दीपावली
देव + अंगना = देवांगना
देव + अर्चन = देवार्चन
देव + अंशु = देवांशु
दैत्य + अरि = दैत्यारि
धर्म + अधिकारी = धर्माधिकारी
धर्म + अंध = धर्मांध
धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
धन + अधीश = धनाधीश
धन + अभाव = धनाभाव
धर्म + अधर्म = धर्माधर्म
धर्म + अवतार =धर्मावतार
नर + अयन = नारायण
नाग + अधिराज = नागाधिराज
निम्न + अंकित = निम्नांकित
नियम + अवली = नियमावली
नील + अंजल = नीलांजल
नील + अंबर = नीलांबर
नयन + अम्बु = नयनाम्बु
नयन + अभिराम = नयनाभिराम
पंच + अमृत = पंचामृत
पंच + अग्नि = पंचाग्नि
पद +अधिकारी = पदाधिकारी
पद+ अवली = पदावली
पुलक + अवली = पुलकावली
पर + अर्थ = परार्थ
पर + अधीन =पराधीन
परम + अर्थ = परमार्थ
पाठ + अंतर = पाठांतर
पीत + अंबर =पीतांबर
पुंडरीक + अक्ष = पुंडरीकाक्ष
पूर्व + अनुराग = पूर्वानुराग
पूर्व + अंचल = पूर्वांचल
पूर्व + अनुमान = पूर्वानुमान
पूर्व + अभ्यास = पूर्वाभ्यास
प्रश्न + अनुसार = प्रश्नानुसार
फल + अफल = फलाफल
बद्ध +अनुराग = बद्धानुराग
बहुल + अंश = बहुलांश
भाव + अंतर = भावांतर
मत + अनुसार = मतानुसार
मंद + अग्नि = मंदाग्नि
मद + अंध = मदां
मध्य + अंतर = मध्यांतर
मध्य + अवधि = मध्यावधि
मध्य + अवकाश = मध्यावकाश
मलय + अनिल = मलयानिल
मुख + अग्नि = मुखाग्नि
मृग + अंक = मृगांक
युग + अनुसार = युगानुसार
रस + अनुभूति = रसानुभूति
राम + अयन = रामायण
राम + अवतार = रामावतार
राज्य + अभिषेक = राज्याभिषेक
राष्ट्र + अध्यक्ष = राष्ट्राध्यक्ष
रूद्र + अक्ष = रूद्राक्ष
रूद्र + अवतार = रूद्रावतार
रोम + अवली = रोमावली
लाभ + अन्वित = लाभान्वित
लिंग + अनुशासन = लिंगानुशासन
लिंग + अनुपात = लिंगानुपात
लोहित + अश्व = लोहिताश्व
लोक + अधिपति = लोकाधिपति
वंश + अंकुर = वंशाकुर 
वंश + अनुक्रम = वंशानुक्रम
विचार + अधीन = विचाराधीन
विकल + अंग = विकलांग
विद्या + अध्ययन = विद्याध्ययन
वीर + अंगना = वीरांगना
वेद + अंत = वेदांत
वेद + अध्ययन = वेदाध्ययन
वर्णन + अतीत = वर्णनातीत
शक + अरि = शकारि
शत + अब्दी = शताब्दी
शब्द + अलंकार = शब्दालंकार
शरीर + अंत = शरीरांत
शस्त्र + अस्त्र = शस्त्रास्त्र
शरण +अर्थी = शरणार्थी
शश + अंक = शशांक
शस्त्र + अनुसार = शस्त्रानुसार
शास्त्र + अर्थ = शास्त्रार्थ
शिव + अम्बु = शिवाम्बु
श्वेत + अंबर = श्वेतांबर
श्लेष + अलंकार = श्लेषालंकार
सत्य + अर्थ = सत्यार्थ
सत्य + असत्य = सत्यासत्य
सत्य + अन्वेषी = सत्यान्वेषी
सभा + अध्यक्ष = सभाध्यक्ष
समय + अभाव = समयाभाव
समान + अधिकार = समानाधिकार
समान + अंतर = समानांतर
सर्व + अधिक = सर्वाधिक
सार + अंश = सारांश
स्वर्ण + अक्षर = स्वर्णाक्षर
सह + अनुभूति = सहानुभूति
स + अवधान = सावधान
सुर + असुर = सुरासुर
स्व + अर्थ = स्वार्थ
स्व + अर्थी = स्वार्थी
स्व + अधीन = स्वाधीन
स्व + अधीनता = स्वाधीनता
स्व + अवलंबी = स्वावलंबी
स्व + अभिमान = स्वाभिमान
स्व + अध्याय = स्वाध्याय
हरिण + अक्षी = हरिणाक्षी
हीन + अवस्था = हीनावस्था
त्रिपुर + अरि = त्रिपुरारि

निम्नलिखित उदाहरण में ह्स्व स्वर 'अ' तथा दीर्घ स्वर 'आ' के मेल से दीर्घ स्वर 'आ' की उत्पत्ति होती है। उसके उपरांत प्रथम शब्द का अंतिम व्यंजन 'आ' की मात्रा से सजकर नया शब्द बनता है।

(अ + आ = आ)

असुर + आलय = असुरालय    
अन + आदर = अनादर
अन + आवृष्टि = अनावृष्टि
अनाथ + आलय = अनाथालय
अमर + आसन = अमरासन
अंड + आकार = अंडाकार
अश्व + आरोही = अश्वारोही
अल्प + आयु = अल्पायु
एक + आनन = एकानन
कृष्ण + आनंद = कृष्णानंद
कुश + आसन = कुशासन
गज + आनन = गजानन
गुरुत्व + आकर्षण = गुरुत्वाकर्षण
गेय + आत्मकता = गेयात्मकता
गोल + आकार = गोलाकार
धन + आनंद = धनानंद
चतुर + आनंद = चतुरानंद
चतुर + आनन = चतुरानन
चंद्र + आकार = चंद्राकार
चरण + आयुद्ध = चरणायुद्ध
चिर + आयु = चिरायु
छात्र + आवास = छात्रावास
जल + आशय = जलाशय
जन + आश्रम = जनाश्रम
जन + आश्रय = जनाश्रय
ज्ञान + आत्मा = ज्ञानात्मा
तिमिर + आच्छादित = तिमिराच्छादित
तमस + आच्छन्न = तमसाच्छन्न
तमस + आवृत = तमसावृत
तुषार + आवृत्त = तुषारावृत्त
देव + आगमन = देवागमन
दूत + आवास = दूतावास
द्रोण + आचार्य = द्रोणाचार्य
दश + आनन = दशानन
दूर + आगत = दूरागत
देव + आलय = देवालय
देव + अंगना = देवांगना
दोष + आरोपण = दोषारोपण
दर्शन + आचार्य = दर्शनाचार्य
दुग्ध + आहार = दुग्धाहार
धर्म + आत्मा = धर्मात्मा
धन + आदेश = धनादेश
धन + आनंद = धनानंद
धर्म + आचार्य = धर्माचार्य
धूम + आच्छन्न = धूमाच्छन्न
नीच + आशय = नीचाशय
न्याय + आलय = न्यायालय
न्याय + अधीश = न्यायाधीश
नृत्य + आलय = नृत्यालय
निम्न + अनुसार =निम्नानुसार
पंच + आनंद = पंचानंद
पंच + आनन = पंचानन
पत्र + आचार = पत्राचार
पद + आक्रांत = पदाक्रांत
पद + आरूढ = पदारूढ
परम + आत्मा = परमात्मा
परम + आवश्यक = परमावश्यक
पुण्य + आत्मा = पुण्यात्मा
पुस्तक + आलय = पुस्तकालय
पूर्व + आग्रह = पूर्वाग्रह
प्र + आगण = प्रांगण
प्राण + आधार = प्राणाधार
प्र + आचार्य = प्राचार्य
प्र + अध्यापक = प्राध्यापक
प्रधान + आचार्य = प्रधानाचार्य
फल + आहार = फलाहार
फल + आदेश = फलादेश
फल + आकांक्षा = फलाकांक्षा
फल + आगम = फलागम
बद्ध + अंजली = बद्धांजली
ब्रह्मचर्य + आश्रम = ब्रह्मचर्याश्रम
भोजन +आलय = भोजनालय
भद्र + आसन = भद्रासन
भव + आतुर = भवातुर
भाव + आवेश = भावावेश
मंगल + आकार = मंगलाकार
मत्स्य + आकार = मत्स्याकार
मरण + आसन्न = मरणासन्न
महत्व + आकांक्षा = महत्वकांक्षा
महत्व + आकांक्षी = महत्वाकांक्षी
मुख + आकृति = मुखाकृति
मेघ + आच्छन्न = मेघाच्छन्न
रक्त + आभ = रक्ताभ
रस + आस्वादन = रसास्वादन
रत्न + आकर = रत्नाकर
रस + आत्मक = रसात्मक
रस + आभास = रसाभास
राज्य + आगार = राज्यागार
राम + आधार = रामाधार
राम + आनंद = रामानंद
लाट + अनुप्रास = लाटानुप्रास
लोक + आयतन = लोकायतन
लोप + आमुद्रा = लोपामुद्रा
वज्र + आघात = वज्राघात
वज्र + आयुद्ध = वज्रायुद्ध
वसंत + आगमन = वसंतागमन
वस्त्र + आलय = वस्त्रालय
वर्ण + आश्रम = वर्णाश्रम
वर्ग + आकार = वर्गाकार
विंध्य + आचल = विंध्याचल
व्यायाम + आदि = व्यायामादि
शरण + आगत = शरणागत
शिष्ट + आचार = शिष्टाचार
शिव + आलय = शिवालय
शुभ + आरंभ = शुभारंभ
शुभ + अंशु = शुभ्रांशु
श्लोक + आबद्ध = श्लोकाबद्ध
सत्य + आग्रह = सत्याग्रह
सत्य + आग्रही = सत्याग्रही
संशय + आत्मक = संशयात्मक
संदेह + आत्मक = संदेहात्मक
संकट + आपन्न = संकटापन्न
संगीत + आत्मक = संगीतात्मक
संग्रह + आलय = संग्रहालय
स + आश्चर्य = साश्चर्य
साहित्य + आचार्य = साहित्याचार्य
सिंह + आसन = सिंंहासन
हत + आश = हताश
हत + आहत = हताहत
हिम + आचल = हिमाचल
हिम + आच्छादित = हिमाच्छादित
हास्य + आस्पद = हास्यास्पद
त्रिभुज + आकार = त्रिभुजाकार
क्षुद्र + आत्मा = क्षुद्रात्मा

निम्न उदाहरण में दीर्घ स्वर 'आ' तथा ह्स्व स्वर 'अ' के योग से दीर्घ स्वर 'आ' के रूप में परिवर्तन होता है । जिससे पहले शब्द के अंतिम व्यंजन में 'आ' की मात्रा लगता है।

(आ + अ = आ)

आत्मा + अवलंबन = आत्मावलंबन
आशा + अतीत = आशातीत
जिह्वा + अग्र = जिह्वाग्र
झंझा + अनिल = झंझानिल
दीक्षा + अंत = दीक्षांत
द्वारका + अधीश = द्वारकाधीश
तथा + अस्त = तथास्तु
परीक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी
भाषा + अंतर = भाषांतर
महा + अमात्य = महामात्य
यथा + अर्थ = यथार्थ
लेखा + अधिकारी = लेखाधिकारी
शिक्षा + अर्थी = शिक्षार्थी
श्रद्धा + अंजलि = श्रद्धांजलि

नीचे दिए गए उदाहरण में दोनों दीर्घ स्वर 'आ' मिलकर दीर्घ रूप 'आ' का आकार लेते हैं। पूर्व की तरह इसमें भी प्रथम शब्द के व्यंजन को 'आ' की मात्रा से सुशोभित किया जाता है।

कृपा + आचार्य = कृपाचार्य
कृपा + आकांक्षी = कृपाकांक्षी
तथा + आगत = तथागत
दया + आनंद = दयानंद
निरा + आनंद = निरानंद
प्रेमा + आलाप = प्रेमालाप
मदिरा + आलय = मदिरालय
महा + आशय = महाशय
महा + आत्मा = महात्मा
राजा + आज्ञा = राजाज्ञा
लीला + आगार = लीलागार
वार्ता + आलाप = वार्तालाप
विद्या + आलय = विद्यालय
शिला + आसन = शिवासन
शिक्षा + आलय = शिक्षालय
क्षुधा + आतुर = क्षुधातुर
क्षुधा + आर्त्त = क्षुधार्त्त

निम्नलिखित उदाहरण में ह्स्व 'इ' हो या दीर्घ 'ई', दोनों में से कोई भी इ / ई से जुड़ते हैं तो परिणाम पूर्ववत ही होता है अर्थात वे दीर्घ 'ई' में परिवर्तित हो जाते हैं, फिर प्रथम शब्द के आखिरी व्यंजन 'ई' की मात्रा में रूपांतरित हो जाते हैं।

जैसे -

         इ + इ = ई
         इ + ई = ई
         ई + इ = ई
         ई + ई = ई

( इ + इ = ई )

अभि + इष्ट = अभीष्ट
अति + इव = अतीव
अति + इंद्र = अतींद्र
कवि + इंद्र = कवींद्र
गिरि + इंद्र = गिरींद्र
मुनि + इंद्र = मुनींद्र
रवि + इंद्र = रवींद्र

( इ + ई = ई )

अधि + ईश्वर = अधीश्वर
अधि + ईश = अधीश
कपि + ईश्वर = कपीश्वर
कपि + ईश = कपीश
कवि + ईश = कवीश
गिरि + ईश = गिरीश
परि + ईक्षा = परीक्षा
मुनि + ईश = मुनीश
रवि + ईश = रवीश
हरि +ईश = हरीश

( ई + इ = ई )

फनी + इंद्र = फनींद्र
रजनी + इंदु = रजनींदु
नारी + इंदु = नारींदु
मही + इंद्र = महींद्र

( ई + ई = ई )

जानकी + ईश = जानकीश
नदी + ईश = नदीश
नारी + ईश्वर = नारीश्वर
पृथ्वी + ईश = पृथ्वीश
मही + ईश्वर = महीश्वर
रजनी + ईश = रजनीश

निम्नांकित उदाहरण में ह्स्व 'उ' या दीर्घ 'ऊ' से उ / ऊ का संयोग होने पर वह दीर्घ 'ऊ' में परिणत हो जाता है।इसके साथ ही प्रथम शब्द के अंतिम व्यंजन में दीर्घ 'ऊ' की मात्रा से विभूषित हो जाता है।

( उ + उ = ऊ )
( उ + ऊ = ऊ )
( ऊ + उ = ऊ )
( ऊ + ऊ = ऊ )

अनु + उपमेय = अनुपमेय
गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
भानु + उदय = भानूदय
लघु + उत्तरीय = लघूत्तरीय
विधु + उदय = विधूदय
सु + उक्ति = सूक्ति

लघु + ऊर्मि = लघूर्मि
सिंधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि
भानु + ऊर्जा = भानूर्जा

चमू + उत्साह = चमूत्साह
वधू + उत्सव = वधूत्सव
वधू + उल्लेख = वधूल्लेख

भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व

नीचे दिए गए उदाहरण में ' ऋ ' का ' ऋ ' से मेल होने की स्थिति में विकार ' ऋ ' में होने के साथ ही ' ऋ ' की ही मात्रा का उपयोग होता है।
यद्यपि इसका प्रयोग सिर्फ संस्कृत में ही होता है।

पितृ + ऋण = पितृण
मातृ + ऋणाम = मातृणाम
































 

Sunday, November 17, 2019

समास में अंतर

                   समास में अंतर

कुछ समास समान प्रतीत होने के उपरांत भी उनमें कुछ सूक्ष्म अंतर प्रकट होते हैं।

कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर :

द्विगु और बहुव्रीहि समास में अंतर :

कर्मधारय समास में दोनों पद प्रधान होते हैं। यह किसी अन्य अर्थ की ओर संकेत नहीं करते हैं। इसका एक पद विशेषण या उपमान तथा दूसरा पद विशेष्य या उपमेय होता है।
परन्तु बहुव्रीहि समास में दोनों पद गौण होकर किसी पृथक अर्थ की ओर संकेत करते हैं।

पहला उदाहरण :

कमलनयन - कमल जैसे नयन (आँख) - कर्मधारय समास

दूसरा उदाहरण :

कमलनयन - कमल समान नयन हैं जिनके (कृष्ण) - बहुव्रीहि समास

उपरोक्त पहले उदाहरण 'कमलनयन' शब्द में पूर्व पद 'कमल' विशेषण या उपमान है जो उत्तर पद में स्थित विशेष्य या उपमेय के रूप में 'नयन' की विशेषता प्रदर्शित करते हैं।
इसमें विशेषण या विशेष्य तथा उपमान या उपमेय के मेल का ज्ञात होता है जो कर्मधारय समास होने का संकेत करते हैं। 
किंतु बहुव्रीहि समास में दोनों पद संगठित होकर किसी अन्य अर्थ को प्रकट करते हैं।
उपरोक्त दूसरे उदाहरण में 'कमल' और 'नयन' दोनों पद मिलकर किसी तीसरे शब्द 'कृष्ण' का निर्माण करते हैं।
अतः यह सामासिक पद 'कमलनयन' बहुव्रीहि समास के अंतर्गत आते हैं।

जैसे : 

पीतांबर - पीला है जो वस्त्र (कर्मधारय समास)
पीतांबर - पीला है वस्त्र जिनका - कृष्ण (बहुव्रीहि समास)

द्विगु और बहुव्रीहि समास में अंतर :

द्विगु समास का पूर्व पद संख्यावाची होता है जो उत्तर पद की संख्या बताता है एवं दोनों पद मिलकर अर्थात समस्त पद समूहवाचक बन जाता है। इसका पूर्व पद, संख्यावाची विशेषण होता है।
बहुव्रीहि समास मे प्रथम पद संख्यावाचक होने के बावजूद निष्क्रिय होकर द्वितीय पद के साथ मिलकर किसी तीसरे पद का सृजन करता है।

पहला उदाहरण :

त्रिलोचन - तीन लोचनों (आँखों) का समूह (द्विगु समास)

दूसरा उदाहरण :

त्रिलोचन - तीन लोचन हैं जिनके - शिव (बहुव्रीहि समास)

उपरोक्त पहला उदाहरण 'त्रिलोचन' में पूर्व पद 'त्रि' संख्यावाची विशेषण है जिसका अर्थ 'तीन' तथा उत्तर पद 'लोचन' का अर्थ 'आँँख' होता है। जिसका अर्थ तीन लोचनों का समूह होता है। दोनों पद मिलकर समूह का बोध कराते हैं इसलिए यह द्विगु समास के अंतर्गत आते हैं।
दूसरे उदाहरण में दोनों पद मिलकर एक नवीन शब्द बनाते हैं क्योंकि सिर्फ 'शिव' के ही तीन आँँखें होते हैं। इस सामासिक पद से 'शिव' नामक अर्थ प्रस्तुत होता है। अतः इसे बहुव्रीहि समास कहा जाता है।

जैसे :

चतुर्भुज - चार भुजाओं का समूह (द्विगु समास)
चतुर्भुज - चार भुजाएँ हैं जिनकी - शिव (बहुव्रीहि समास

समास से संबंधित कुछ प्रश्नोत्तर : 

1. प्रश्न : शब्द समूह को संक्षिप्त करने की प्रक्रिया को                 क्या कहा जाता है ?
    उत्तर : समास।
2. प्रश्न : दोनों पद मिलकर एक नवीन शब्द बनाते हैं,                 उसे क्या कहते हैं ?
   उत्तर : सामासिक पद।
3. प्रश्न : समस्त पद को खंडित करने को क्या कहते हैं              ?
    उत्तर : समास विग्रह।
4. प्रश्न : विग्रह करने पर दोनों पदों के मध्य क्या                       लगता है ?
    उत्तर : कारक का विभक्ति चिह्न या परसर्ग।
5. प्रश्न : समस्त पद का दूसरा नाम क्या है ?
    उत्तर : सामासिक पद।
6. प्रश्न : समस्त पद के पहले पद को क्या कहा जाता                 है ?
    उत्तर : पूर्व पद।
7. प्रश्न : समस्त पद का दूसरा पद क्या कहलाता है ?
    उत्तर : उत्तर पद।
8. प्रश्न : समास के कितने भेद होते हैं ?
   उत्तर : छ: भेद।
9. प्रश्न : अव्ययीभाव समास का कौन सा पद प्रधान                  होता है ?
    उत्तर : पूर्व या पहला पद।
10. प्रश्न : किस समास का पहला पद अव्यय होता है                   ?
      उत्तर : अव्ययीभाव समास।
11. प्रश्न : किस समास का समस्त पद अविकारी होता                है ?
      उत्तर : अव्ययीभाव समास।
12. प्रश्न : किस समास का उत्तर पद प्रधान होता है ?
      उत्तर : तत्पुरूष समास।
13. प्रश्न : किस समास का एक पद विशेषण और                        दूसरा पद विशेष्य होता है ?
     उत्तर : कर्मधारय समास।
14. प्रश्न : उपमान और उपमेय के संयुक्त पद वाले                      समास को क्या कहा जाता है ?
      उत्तर : कर्मधारय समास।
15. प्रश्न : विशेषण शब्द किसकी विशेषता बताता है ?
      उत्तर : विशेष्य।
16. प्रश्न : उपमान किसे कहते हैं ?
     उत्तर : जिससे उपमा दी जाए या तुलना की जाए                    उसे उपमन कहते हैं।
17. प्रश्न : उपमेय क्या है ?
      उत्तर : जिसकी समानता या तुलना की जाती है,                      वह उपमेय कहलाता है।
18. प्रश्न : किस समास का पूर्व पद संख्यावाची होता है                 ?
      उत्तर : द्विगु समास।
19. प्रश्न : कौन सा समास समूह का बोध कराता है ?
      उत्तर : द्विगु समास।
20. प्रश्न : किस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं ?
      उत्तर : द्वंद्व समास।
21. प्रश्न : किस समास को विग्रह करने पर योजक                      शब्द का प्रयोग किया जाता है ?
     उत्तर : द्वंद्व समास।
22. प्रश्न : द्वंद्व समास का विग्रह करने पर कौन सा                      योजक शब्द प्रयुक्त किया जाता है ?
      उत्तर : और / या ।
23. प्रश्न : किस समास के दोनों पद निष्क्रिय होकर                      किसी अन्य पद को प्रधानता देते हैं ?
      उत्तर : बहुव्रीहि समास ।
24. प्रश्न : किस समास का तीसरा पद प्रधान होता है                   ?
      उत्तर : बहुव्रीहि समास।
25. प्रश्न : संधि और समास में क्या अंतर है ?
      उत्तर : संधि वर्णों का तथा समास शब्दों का मेल                      होता है।










Wednesday, November 13, 2019

बहुव्रीहि समास

                      बहुव्रीहि समास

बहुव्रीहि का अर्थ :

बहुव्रीहि समास की परिभाषा :

बहुव्रीहि समास का उदाहरण :

अर्थ:

बहु + व्रीहि = बहुव्रीहि
उपरोक्त शब्द में प्रथम पद 'बहु', द्वितीय पद 'व्रीहि' का विशेषण है। दोनों पद संयुक्त रूप से विशेषण बन जाते हैं।

परिभाषा :

जिस समास में दोनों पद संगठित होकर किसी तीसरे पद का निर्माण करते हैं एवं दोनों पद गौण होकर अन्य अर्थ प्रकट करते हैं, वे बहुव्रीहि समास के अंतर्गत आते हैं। 
सामान्य अर्थ में दोनों पद प्रभावहीन होकर किसी भिन्न संज्ञा का बोध कराते हैं।

साधारण शब्द में जिस समास के दोनों पद अप्रधान एवं उनके अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ निकलकर सामने प्रस्तुत हो, वह बहुव्रीहि समास कहलाता है।

निम्नांकित उदाहरण में सामासिक शब्द 'गजवदन' में प्रथम पद 'गज' का अर्थ हाथी तथा उत्तर पद 'वदन' का अर्थ मुख होता है। विग्रह के उपरांत इसका अर्थ 'हाथी के समान मुख है जिनका' होता है।
परन्तु इसका सांकेतिक अर्थ 'गणेश' होगा क्योंकि यह शब्द गणेश जी के लिए ही प्रयुक्त होता है।

गजवदन = गज के समान मुख हो जिनका = गणेश

एक अन्य उदाहरण :

चक्रधर = चक्र है जो धारणकर्ता = विष्णु
उपरोक्त सामासिक पद 'चक्रधर' चक्र धारण करनेवाले को कहा जाता है, लेकिन इस नाम से विष्णु को संबोधित किया जाता है।

एक और उदाहरण :

शूलपाणि = त्रिशूल है जिसके पाणि (हाथ) में = शिव

उपरोक्त समस्त पद 'शूलपाणि' का सामान्य अर्थ जिनके हाथ त्रिशूल हो उसे 'शूलपाणि' कहा जाता है। इस शब्द से एक अन्य अर्थ 'शिव' प्रकट होता है। वस्तुतः शिव ही त्रिशूल धारक हैं। 

समस्त पद                विग्रह


भूतनाथ                    भूतों का नाथ (शिव)
त्रिलोचन                   तीन लोचन हैं जिनके (शिव)
चंद्रमौली                   चंद्र है जिसके मस्तक पर (शिव)
महादेव                     महान हैं जो देव (शिव)
चंद्रचूड़                     चंद्रमा है जिनके चोटी पर (शिव)
आशुतोष                  जो शीघ्र संतुष्ट हो जाए (शिव)
चंद्रशेखर                  चंद्र है जिनके शिखर पर (शिव)
नीलकंठ                    नीला है कंठ जिनका (शिव)
त्रिनेत्र                       तीन नेत्र हैं जिनके (शिव)
पंचानन                     पाँच सिर हैं जिनके (शिव)
मृत्युंजय                    मृत्यु को जितने वाला (शिव)
इंदुशेखर                   इंदु हैं जिनके शीश पर (शिव)
चंद्रभाल                    चंद्र है जिसके ललाट पर (शिव)

आजानुबाहु               घुटनों तक बाँह हैं जिनके(विष्णु)
पुण्डरीकाक्ष              कमल जैसे आँखों वाले (विष्णु)
चतुर्भुज                    चार हैं भुजाएँ जिनके ((विष्णु)
पीतांबर                    पीले हैं वस्त्र जिनके (विष्णु)
गरूड़ध्वज                गरूड़ है ध्वज जिनका (विष्णु)
चक्रपाणि                   चक्र है हाथ में जिनके (विष्णु)

वक्रतुंड                     वक्र सूँड़ है जिनके (गणेश)
गजानन                    गज समान सिर वाले (गणेश)
एकदंत                      एक दाँत है जिनका (गणेश)
लंबोदर                     लंबा है उदर जिनका (गणेश)

राधारमण                  राधा सह रमनेवाले (कृष्ण)
मुरलीधर                   मुरली धारक हैं जो (कृष्ण)
घनश्याम                   घन के समान काला (कृष्ण)
गोपाल                      गायों का पालन कर्ता (कृष्ण)

मन्मथ                       मन को मथनेवाला (कामदेव)
अनंग                        बिना अंग का है जो (कामदेव)
मनोज                       मन से जन्म लेनेवाला (कामदेव)
मकरध्वज                 मकर है ध्वज जिनका (कामदेव)

कपीश                      कपियोंं के ईश्वर हैं जो (हनुमान)
वज्रांग                       वज्र समान अंगवाले (हनुमान)
महावीर                     महान वीर हैं जो (हनुमान)

चतुरानन                   चार सिर हैं जिनके (ब्रह्मा)
नाभिज                      नाभि में जन्मा जो (ब्रह्मा)
चतुर्मुख                     चार मुख है जिनका (ब्रह्मा)

वाग्देवी                     भाषा की देवी है जो (सरस्वती)
श्वेताम्बरी                  श्वेत हैं वस्त्र जिनके (सरस्वती)
वीणापाणि                  वीणा है हाथ जिनके (सरस्वती)

दशानन                     दस हैं सिर जिसके (रावण)
लंकेश                       लंका का एश (रावण)

अंशुमाली                   अंशु है माला जिनकी (सूर्य)
दिनकर                      दिन का उत्पन्न कर्ता (सूर्य)

वज्रपाणि                     वज्र है हाथ जिनके (इंद्र)
वज्रायुध                      वज्र  है आयुध जिनका (इंद्र)

जानकीवल्लभ             जानकी के वल्लभ हैं जो (राम)
रत्नगर्भा                     रत्नों के गर्भ वाली (पृथ्वी)
पद्मासन                      कमल पर आसीन (लक्ष्मी)
शैलपुत्री                     शैल की पुत्री है जो (पार्वती)
मयूरवाहन                  मयूर है वाहन (कार्तिकेय)
हलधर                       हल का धारण कर्ता (बलराम)
खगेश                        खगों का ईश्वर है जो (गरुण)
निशाचर                     रात्रि विचरण कर्ता (राक्षस)
वज्रदंती                      वज्र जैसे दाँत हैंं जिसके(हाथी)
विषधर                       विष का धारक (साँप)
बसंतदूत                     बसंत ऋतु का दूत (कोयल)
बारहसिंगा                   बारह सींग हैं जिसके (हिरण)
षटपद                         छः पैर हैं जिसके (भौंरा)
पंकज                          कीचड़ में जन्मा ( कमल)
जलद                          जल प्रदानकर्ता (मेघ)
जलज                         जल जनित (कमल)

















  

Sunday, November 10, 2019

द्वंद्व समास

                          द्वंद्व समास

द्वंद्व समास की परिभाषा :

द्वंद्व समास के उदाहरण :

परिभाषा :

जिस समास में दोनों पद प्रधान होने के साथ विपरीत अर्थ वाले भी होते हैं, द्वंद्व समास कहलाते हैं।

इसमें दोनों पदों का समान महत्व होता है। दोनों पद पारस्परिक विलोम भी होते हैं।

'द्वंद्व' शब्द का तात्पर्य 'संघर्ष' होता है। समान क्षमता वालों के बीच का संघर्ष रोमांचक होता है। 
साधारण शब्दों में, लड़ाई बराबर वालों में होनी चाहिए।
भिन्न क्षमता वालों के बीच की लड़ाई का परिणाम पूर्व निर्धारित होता है।

सामासिक पद :

दोनों पदों के मिश्रित रूप को सामासिक पद कहा जाता है। इसमें योजक शब्द 'और,या' अदृश्य रहता है। उसके बदले योजक चिह्न (-) का प्रयोग किया जाता है।दोनों पदों को युग्म शब्द के रूप में उपयोग किया जाता है।
दोनों पदों में पारस्परिक संबंध निर्धारित होता है लेकिन एक दूसरे के प्रति निर्भरता का अभाव पाया जाता है।

विग्रह :

समस्त पद को विग्रह करते समय दोनों पदों के बीच के योजक चिह्न (-) को लोपकर योजक शब्द 'और, या' को प्रयुक्त किया जाता है।

निम्न उदाहरण मे समस्त पद 'सुख-दुख' दोनों का समान और विपरीत अर्थ में वाक्य में प्रयोग हुआ है। विग्रह के उपरांत वाक्य में योजक शब्द 'और,या' प्रयुक्त हुआ है।

वाक्य के रूप में उदाहरण :

मानव को अपने जीवन में सुख और दुख दोनों समान रूप से प्राप्त होते हैं।

एक अन्य उदाहरण में सुख-दुख का पारस्परिक विपरीत अर्थ के रूप में उपयोग किया गया है।

वाक्य के रूप में उदाहरण :

भोग विलासी लोग सुख या दुख में से सिर्फ सुख का ही चयन करते हैं।

समस्त पद                           विग्रह

अगल-बगल                        अगल और बगल
अगला-पिछला                     अगला या पिछला 
अच्छा-बुरा                           अच्छा या बुरा
अच्छाई-बुराई                       अच्छाई और बुराई
अंदर-बाहर                          अंदर और बाहर
अँधेरा-उजाला                      अँधेरा या उजाला
अन्न-जल                             अन्न और जल
अपना-पराया                        अपना और पराया
अपराह्न-पूर्वाह्न                   अपराह्न और पूर्वाह्न
अमीर-गरीब                         अमीर और गरीब
अड़सठ                                आठ और साठ
अस्त्र-शस्त्र                           अस्त्र या शस्त्र
अग्नि-जल                            अग्नि और जल
आग-पानी                             आग और पानी
आया-गया                             आया और गया
आना-जाना                           आना और जाना
आटा-दाल                             आटा और दाल
आकाश-पाताल                      आकाश या पाताल

इधर-उधर                             इधर या उधर
उदय-अस्त                            उदय और अस्त
उच्च-निम्न                             उच्च या निम्न
उतार-चढाव                           उतार और चढाव
ऊँच-नीच                               ऊँच या नीच
उत्थान-पतन                          उत्थान और पतन
ऊँचा-नीचा                             उँचा और नीचा
ऊपर-नीचे                              ऊपर या नीचे
ऊबड़-खाबड़                          ऊबड़ और खाबड़

एक-अनेक                              एक या अनेक
एड़ी-चोटी                               एड़ी और चोटी

ऋषि-मुनि                               ऋषि और मुनि

कपडा-लत्ता                            कपड़ा और लत्ता
कहा-सुनी                               कहा और सुनी
किताब-कॉपी                           किताब या कॉपी
कहना-सुनना                           कहना और सुनना

खट्टा-मीठा                            खट्टा या मीठा
खर-दूषण                                खर और दूषण
खरा-खोटा                               खरा और खोटा
खाली-भरा                               खाली या भरा
खोना-पाना                              खोना या पाना

गुण-दोष                                  गुण और दोष
गुणा-भाग                                गुणा या भाग
गुण-अवगुण                             गुण और अवगुण
ग्रामीण-शहरी                           ग्रामीण या शहरी
गोरा-काला                              गोरा और काला
गौरीशंकर                               गौरी और शंकर

घर-द्वार                                    घर और द्वार

चढना-उतरना                           चढना या उतरना

छल-कपट                                 छल और कपट
छोटा-बड़ा                                 छोटा और बड़ा
छात्र-छात्रा                                 छात्र और छात्रा

जय-पराजय                              जय या पराजय
जनम-मरण                               जनम या मरण
जवानी-बूढापा                           जवानी या बूढापा
जन्म-मृत्यु                                 जन्म और मृत्यु
जान-बेजान                               जान या बेजान
जाना-पहचाना                           जाना और पहचाना
जीव-जन्तु                                 जीव और जन्तु
जोड़-घटाव                               जोड़ और घटाव
ज्ञान-अज्ञान                              ज्ञान और अज्ञान
ज्ञान-विज्ञान                              ज्ञान और विज्ञान
ज्ञानी-अज्ञानी                            ज्ञानी और अज्ञानी

झूठ-सच                                   झूठ या सच

ठंडा-गरम                                 ठंडा या गरम

तीव्र-मंद                                   तीव्र या मंद
तेज-धीरे                                  तेज या धीरे

थोड़ा-बहुत                              थोड़ा या बहुत
         
दया-निर्दय                               दया या निर्दय
दाल-रोटी                                दाल और रोटी  
दाल-चावल                              दाल और चावल
दायें-बायें                                 दायें या बायें
दिन-रात                                  दिन या रात
दुबला-पतला                            दुबला और पतला
दूर-पास                                   दूर या पास     
देव-दानव                                 देव या दानव
देश-विदेश                                देश और विदेश

धन-दौलत                               धन और दौलत
धर्म-अधर्म                               धर्म और अधर्म
धनी-निर्धन                              धनी या निर्धन
धीमा-तेज                                धीमा और तेज

नर-नारी                                  नर या नारी
नया-पुराना                              नया या पुराना 
नाक-कान                                नाक और कान
नदी-नाले                                 नदी और नाले
नृत्य-गान                                 नृत्य और गान

पच्चीस                                    पाँच और बीस
पति-पत्नी                                पति या पत्नि
पास-फेल                                 पास या फेल
पाप-पुण्य                                 पाप और पुण्य
पशु-पक्षी                                 पशु या पक्षी
पेड़-पौधा                                 पेड़ और पौधा
प्रकाश-अंधकार                        प्रकाश और अंधकार
प्राचीन-नवीन                            प्राचीन और नवीन
प्रेम-घृणा                                   प्रेम या घृणा
प्रेमी-प्रेमिका                               प्रेमी और प्रेमिका
प्रातः-सायं                                 प्रातः या सायं

फल-फूल                                   फल और फूल
फूल-काँटा                                  फूल या काँटा

बचपन-बूढापा                            बचपन या बूढापा
बूढा-बूढी                                   बूढा और बूढी

भय-निर्भय                                 भय या निर्भय
भला-बुरा                                   भला और बुरा
भाई-बहन                                  भाई और बहन
भाई-भतीजा                               भाई या भतीजा
भूखा-प्यासा                                भूखा और प्यासा

मार-काट                                    मार और काट
माता-पिता                                  माता या पिता
मानव-दानव                                मानव और दानव
माँ-बाप                                       माँ और बाप
मूर्ख-विद्वान                                 मूर्ख और विद्वान
मोटा-पतला                                मोटा या पतला
मोटा-ताजा                                 मोटा और ताजा

यश-अपयश                               यश और अपयश
यहाँ-वहाँ                                    यहाँ या वहाँ

रंग-बिरंगा                                  रंग और बिरंगा
राग-द्वेष                                     राग और द्वेष
राजा-रंक                                   राजा या रंक 
राधाकृष्ण                                   राधा और कृष्ण
राजा-रानी                                  राजा और रानी
राधेश्याम                                   राधा और श्याम   
रुपया-पैसा                                 रुपया या पैसा
रुखा-सुखा                                 रुखा और सुखा

लड़का-लड़की                            लड़का या लड़की
लंबा-तगड़ा                                लंबा और तगड़ा  
लाल-हरा                                   लाल और हरा
लाल-पीला                                 लाल और पीला
लाभ-हानि                                  लाभ या हानि
लेन-देन                                     लेन और देन
लोटा-डोरी                                 लोटा और डोरी

विलंब-अविलंब                           विलंब या अविलंब

शंकर-पार्वती                              शंकर और पार्वती
शहर-गाँँव                                  शहर या गाँव
शिव-पार्वती                                शिव और पार्वती

सत्य-असत्य                              सत्य या असत्य
सही-गलत                                 सही या गलत
समान-असमान                          समान या असमान
सिर-पैर                                     सिर और पैर
सीधा-टेढा                                 सीधा या टेढा
सीताराम                                   सीता और राम
सुर-असुर                                  सुर और असुर
सुबह-शाम                                 सुबह या शाम
सोना-जागना                              सोना और जागना
स्त्री-पुरूष                                  स्त्री और पुरूष

हवा-पानी                                   हवा और पानी
हँसना-रोना                                हँसना और रोना
हम-तुम                                      हम और तुम        
हास-परिहास                              हास और परिहास
हार-जीत                                    हार या जीत
हाँ-ना                                         हाँ या ना
हिंसा-अहिंसा                              हिंसा और अहिंसा










































Saturday, November 9, 2019

द्विगु समास

                          द्विगु समास

द्विगु समास की परिभाषा :

द्विगु समास के उदाहरण :

परिभाषा : 

जिस समास का पूर्व अथवा पहला पद संख्यावाची हो तथा समस्त पद समूह का बोध कराता हो, वह द्विगु समास कहलाता है। 
उत्तर पद में स्थित मूल शब्द प्रधान माना जाता है।
पूर्व पद में उपस्थित संख्यावाचक विशेषण उत्तर पद के मूल शब्द की विशेषता बताता है।
यह संख्यावाचक के साथ दिशावाचक विशेषण भी होता है जो उत्तर पद में अवस्थित मूल शब्द से जुड़कर समाहार का निर्माण करता है।

उदाहरण :
समस्त पद                   विग्रह 
चौराहा                        चार राहों का समूह

उपरोक्त उदाहरण में प्रथम पद में 'चौ' का अर्थ 'चार' होता है जो संख्यावाचक विशेषण है। यह मूल शब्दों को गणनाकर निश्चित योगफल या संख्या बताता है। समस्त पद 'चौराहा' उस स्थान का बोध कराता है जहाँ चार राहों का समूह है।

द्विगु समास के उदाहरण :

समस्त पद                     विग्रह                         
दोराहा                           दो राहों का समूह
दोपहर                           दो पहरों का समूह
द्विदल                            दो दलों का समूह

तिरंगा                           तीन रंगों का समूह
तिमाही                         तीन माहों का समूह
त्रिमूर्ति                          तीन मूर्तियों का समूह
त्रिरत्न                          तीन रत्नों का समूह
त्रिभुज                          तीन भुजाओंं का समूह
त्रिलोक                         तीन लोकों का समूह
त्रिकोण                         तीन कोणों का समूह
त्रिभुवन                         तीन भुवनों का समूह
त्रिफला                         तीन फलों का समूह
त्रिशूल                          तीन शूलों का समूह
त्रिदेव                            तीन देवों का समूह
त्रिनेत्र                           तीन नेत्रों का समूह
त्रिवेणी                          तीन वेणियों का समूह
त्रिलोकी                        तीन लोकों का समूह

चवन्नी                          चार आनों का समूह       
चतुर्मुख                         चार मुखों का समूह
चतुर्भुज                         चार भुजाओं का समूह
चातुर्वण                         चार वर्णों का समूह
चारपाई                         चार पायों का समूह
चौपाया                          चार पैरों का समूह
चौमासा                         चार मासों का समूह
चौमुख                           चार मुँहों का समूह

पंचरत्न                          पाँच रत्नों का समूह
पंचपात्र                          पाँच पात्रों का समूह
पंचपल्लव                       पाँच पल्लवों का समूह
पंचकोण                         पाँच कोणों का समूह
पंचतंत्र                           पाँच तंत्रों का समूह
पंचवटी                           पाँच वटों का समूह
पंचानन                           पाँच सिरों का समूह
पसेरी                              पाँच सेरों का समूह

षटरस                             छः रसों का समूह
षटकोण                           छः कोणों का समूह
छमाही                             छः माहों का समूह

सप्तऋषि                         सात ऋषियों का समूह
सप्तद्वीप                          सात द्वीपों का समूह
सप्तसिंधु                         सात सिंधुओं का समूह
सप्ताह                             सात दिनों का समूह
सतसई                            सात सौ दोहों का समूह

अठन्नी                            आठ आनों का समूह
अठकोना                          आठ कोनों का समूह
अष्टग्रह                            आठ ग्रहों का समूह
अष्टगंध                            आठ गंध द्रव्यों का समूह
अष्टधातु                           आठ धातुओं का समूह
अष्टयाम                            आठ पहरों का समूह
अष्टसिद्धि                          आठ सिद्धियों का समूह
अष्टाध्यायी                        आठ अध्यायों का समूह

नौरत्न                               नौ रत्नों का समूह
नौलखा                              नौ लाखों का समूह
नौरात्रि                              नौ रात्रियों का समूह
नवरात्र                              नौ रातों का समूह
नवग्रह                               नौ ग्रहों का समूह

दशानन                              दस सिरों का समूह
दशावतार                           दस अवतारों का समूह

शताब्दी                              सौ वर्षों का समूह
पौर्वशाला                            पूर्व की शाला






Friday, November 1, 2019

कर्मधारय समास

                   कर्मधारय समास

कर्मधारय समास का अर्थ :

कर्मधारय समास की परिभाषा :

कर्मधारय समास का उदाहरण :

अर्थ :

जिस समास शब्द में पूर्व पद विशेषण और उत्तर पद विशेष्य हो,ये कर्मधारय समास के अंतर्गत आते हैं। इस सामासिक शब्द में उत्तर पद प्रधान होता है। इसमें पूर्व पद उत्तर पद की विशेषता बताते हैं।

उदाहरण : नीलकंठ = नील + कंठ = नीला है जो कंठ

उपरोक्त समास शब्द में पूर्व पद 'नील' विशेषण है जो उत्तर पद 'कंठ' की विशेषता बता रहा है, जैसे - नीला है जो कंठ अर्थात जो कंठ नीला है।

विशेषण :

 जो शब्द विशेषता बताते हैं, उस शब्द को विशेषण कहा जाता है।

विशेष्य : 

जिस शब्द की विशेषता बताई जाती है, उस शब्द को विशेष्य कहा जाता है।

इसके साथ ही इस समास शब्द में एक पद उपमान और दूसरा पद उपमेय कहलाता है। यह सर्वदा आवश्यक नहीं कि उपमान पूर्व पद एवं उपमेय उत्तर पद हो। दोनों का स्थान परिवर्तित भी हो सकता है।इसमें किसी सामान्य का किसी असामान्य या प्रसिद्ध वस्तु से समानता दर्शाया जाता है। उपमेय को उपमान के समान बताया जाता है।

उपमान :

 जिस असाधारण वस्तु के साथ साधारण वस्तु की समानता अथवा तुलना की जाती है, वह उपमान कहलाता है।

उपमेय :

 जिस वस्तु की तुलना या समानता की जाती है, उसे उपमेय कहा जाता है।

निम्न उदाहरण में पूर्व पद 'चंद्र' उपमान तथा उत्तर पद 'मुख' उपमेय है। इसमें उपमेय को उपमान के समान सुंदर बताया गया है। इसका अर्थ, चाँद के समान मुख है।

उदाहरण : चंद्रमुख = चंद्र + मुख = चाँद के जैसा मुँह

 एक अन्य उदाहरण :

चरणकमल = चरण + कमल = कमल रूपी चरण

उपरोक्त समास शब्द में उपमान और उपमेय का स्थान परिवर्तित हो गया है। इसमें पूर्व पद 'उपमेय' तथा उत्तर पद 'उपमान' है। स्थान परिवर्तन होने के उपरांत भी अर्थ 'कमल के समान चरण' होता है।

परिभाषा :

जिस समास के दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य या उपमान-उपमेय का संबंध होता है वह सामासिक पद कर्मधारय समास कहलाता है।

कर्मधारय समास के उदाहरण :

विशेषण - विशेष्य कर्मधारय समास :

समस्त पद                           विग्रह
भलामानुष                            भला है जो मनुष्य
स्वेतांबर                               सफेद है जो वस्त्र
नीलगगन                             नीला है जो आकाश
सज्जन                                सच है जो जन
अधपका                              आधा है जो पका
नीलगाय                              नीला है जो गाय
पर्णकुटी                               पर्ण से बनी जो कुटी
श्यामसुंदर                           सुंदर है जो श्याम
पुरूषोत्तम                            पुरूषों में है जो उत्तम
परमेश्वर                              परम है जो ईश्वर
महादेव                                महान है जो देव
महाशय                               महान है जो आशय
दुरात्मा                                बुरी है जो आत्मा
महाविद्यालय                        महान है जो विद्यालय
महाकवि                              महान है जो कवि
नरोत्तम                               नरों में है जो उत्तम
सुपुत्र                                  अच्छा है जो पुत्र
परमानंद                              परम है जो आनंद
परमात्मा                              परम है जो आत्मा
महाकाव्य                             महान है जो काव्य
पीतांबर                               पीला है जो वस्त्र
नीलांबर                              नीला है जो आकाश
महाजन                               महान है जो जन
नीलगगन                            नीला है जो आसमान
कृष्णसर्प                              काला है जो साँप
लालटोपी                            लाल है जो टोपी
कालीमिर्च                            काली है जो मिर्च
अकालमृत्यु                          अकाल है जो मृत्यु
शुभागमन                            शुभ है जो आगमन
लालमणि                             लाल है जो मणि
अंधविश्वास                          अंधा है जो विश्वास
सन्मार्ग                                सच्चा है जो पथ
नवयुवक                              नया है जो युवक
कापुरूष                              कायर है जो पुरूष
महापुरुष                             महान है जो पुरूष
महावीर                               महान है जो वीर
अंधकूप                               अंधेरा है जो कुआँ
वीरबाला                              वीर है जो बाला
निलोत्पल                            नीला है जो कमल
कृष्णमृग                              काला है जो हिरण
कटुक्ति                                कड़वी है जो बोली
ऋषिवर                               ऋषियों में है जो श्रेष्ठ
महाराज                              महान है जो राजा
रेश्मिजुल्फें                           रेशमी है जो जुल्फें
वीरपुरूष                             वीर है जो पुरूष

उपमान-उपमेय कर्मधारय समास :

समस्त पद                           विग्रह
वचनामृत                             वचन रूपी अमृत
स्त्रीरत्न                               स्त्री रूपी रत्न
चरणविद                              चरण रूपी अरविंद
घनश्याम                              घन के समान श्याम
संसारसागर                          संसार रूपी सागर
मुखचँद्र                                चँद्र के समान मुख
नरसिंह                                नर रूपी सिंह
मुखकमल                            कमल जैसा मुँह
मृगलोचन                            मृग जैसी आँख
कमलनयन                          कमल के समान आँख
कनकलता                           सोना रूपी लता
भुजदंड                               दंड के समान भुजा
ग्रंथरत्न                              ग्रंथ रूपी रत्न
लौहपुरूष                            लोहे के समान पुरूष
देहलता                               देह रूपी लता
पुत्ररत्न                               पुत्र रूपी रत्न
क्रोधाग्नि                             क्रोध रूपी अग्नि
गगनांगन                            गगन रूपी आंगन
प्राणप्रिय                              प्राणों के समान प्रिय
करकमल                             कमल के समान हाथ
कुसुमकोमल                         फूल जैसी कोमल
विद्याधन                               विद्या रूपी धन
चंद्रवदन                               चंद्र के समान मुख
गुरुदेव                                 गुरु रूपी देव
मृगनैनी                                मृग के समान नैन

Visarg sandhi

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